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________________ की अभिव्यक्ति नहीं करती? कहने का आशय यही है कि प्रत्येक व्यक्ति पर उपर्यक्त बातों का अलग-अलग प्रभाव पड़ता है, जिसका अनुभव प्रत्येक व्यक्ति का अलग-अलग होता है। दूसरी बात कुछ व्यक्ति वर्तमान में तो लगभग स्वस्थ होते हैं। जो व्यक्ति लम्बे समय से रोगी होते हैं, उनकी प्राथमिकताएँ होती हैं- रोग का फैलाव रोकना तथा आंशिक स्वस्थता अथवा राहत प्राप्त करना। जो व्यक्ति मरणासन पर है, असाध्य भयंकर अथवा संक्रामक रोगों से पीड़ित है अथवा किसी भी प्रकार की विकलांगता से ग्रस्त है, रोगों की भीषणता में आंशिक सुधार से ही वे खुशी का अनुभव कर सन्तुष्ट हो जाते हैं। अतः प्रत्येक व्यक्ति स्वास्थ्य के अलग-अलग स्तर पर जीता है और उनके स्वास्थ्य के अपने अपने अलग-अलग मापदण्ड होते हैं। अलग-अलग आवश्यकताएँ, प्राथमिकताएँ एवं सोच होती है। अतः स्वास्थ्य हेतु सभी के लिए एक-जैसा मापदण्ड, परामर्श, निर्देश और आचरण न तो उचित ही होता है और न सम्भव परन्तु आज स्वास्थ्य का परामर्श देते समय अथवा रोग की अवस्था में निदान करते समय प्रायः अधिकांश चिकित्सक अथवा स्वास्थ्य विशेषज्ञ व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले उपर्युक्त प्रभावों का समग्रता से विश्लेषण नहीं करते। .. स्वास्थ्य हेतु चिकित्सा के विभिन्न दृष्टिकोण ___ रोग की अवस्था में आयुर्वेद के सिद्धान्तानुसार शरीर में वात, पित्त और कफ का असन्तुलन होने लगता है। आधुनिक चिकित्सक को मल, मूत्र, रक्त आदि के परीक्षणों में रोग के लक्षण और शरीर में रोग के कीटाणुओं तथा वायरस दृष्टिगत होने लगते हैं। प्राकृतिक चिकित्सक ऐसी स्थिति से शरीर के निर्माण में सहयोगी पंच तत्त्व पृथ्वी, पानी: हवा, अग्नि और आकाश का असन्तुलन अनुभव करते हैं। एक्यूपंक्चर एवम् एक्यूप्रेशर के विशेषज्ञों के अनुसार शरीर में यिन-यांग का असंतुलन हो जाता है। एक्यूप्रेशर के प्रतिवेद बिन्दुओं की मान्यता वाले थेरेपिष्टों को व्यक्ति की हथेली और पगथली में विजातीय तत्त्वों का जमाव प्रतीत होने लगता है। सुजोक बायल मेरेडियन सिद्धान्तानुसार रोगी के शरीर में पंच ऊर्जाओं (वायु, गर्मी, ठण्डक, नमी और शुष्कता) का आवश्यक सन्तुलन बिगड़ने लगता है। चुम्बकीय चिकित्सक शरीर में चुम्बकीय ऊर्जा का असन्तुलन अनुभव करते हैं। ज्योतिष शास्त्री ऐसी परिस्थिति का कारण प्रतिकूल ग्रहों का प्रभाव बतलाते हैं। आध यात्मिक योगी ऐसी अवस्था का कारण पूर्वाजित अशुभ वेदनीय कमों का उदय मानते हैं। होम्योपेथ और बायोकेमिस्ट की मान्यतानुसार शरीर में आवश्यक रासायनिक तत्त्वों का अनुपात बिगड़ने से ऐसी स्थिति उत्पन्न होने लगती है। आहार विशेषज्ञ शरीर में पौष्टिक तत्त्वों का अभाव बतलाते हैं। शरीर में अम्ल-क्षार, ताप-ठण्डक
SR No.009380
Book TitleSwadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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