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________________ प्रथम तो वे क्रियाएँ जो स्वतः संचालित होती है, जिन पर हमारा प्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण नहीं होता। ये क्रियाएँ चाहे हम निद्रा में हों अथवा जागृत अवस्था में शरीर में चलती रहती है। जैसे हृदय का धड़कना, रक्त का परिभ्रमण, श्वसन, पाचन, शारीरिक अंगों की कार्यप्रणाली, शरीर में आवश्यक अवयवों एवं कोशिकाओं का निर्माण, अनावश्यक विजातीय तत्त्वों का पूर्ण विसर्जन । जैसे आंख, कान, नाक के मल, पसीना, कफ, मल-मूत्र का विसर्जन आदि। दूसरे शरीर की वे क्रियाएँ जिन्हें व्यक्ति अपनी इच्छाओं द्वारा जागृत अवस्था में कुछ नियन्त्रित कर सकता है । जैसे हलन-चलन, उठना-बैठना, देखना-सुनना, बोलना, हँसना, रोना- खाना-पीना आदि । P. संतुलन ही स्वास्थ्य का मूल आधार हमारा शरीर अपने आप में परिपूर्ण होता है। उसमें रोग से बचने एवं रोग • से लड़ने की अपूर्व क्षमता होती है। आवश्यकता है अपनी क्षमताओं को पहचानने समझने तथा उनका सही उपयोग करने की । जितना - जितना हम अपनी क्षमताओं एवं प्राण ऊर्जा का अपव्यय अथवा दुरूपयोग करते हैं, उतने-उतने हम रोगों को आमन्त्रित करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं । प्रायः हम शरीर की भाषा को समझने का प्रयास नहीं करते। अपने आपको ध्यान से नहीं देखते। शरीर की बाह्य आकृति को समझने का प्रयास नहीं करते। हमारी चाल कैसी है? हमारे शरीर का कोई भाग आवश्यकता से अधिक ठंडा अथवा गर्म तो नहीं है? शरीर के किसी भाग की त्वचा का रंग तो नहीं बदल गया है ? हमें भूख-प्यास, निद्रा नियमित और आवश्यकता. के अनुरूप आती है अथवा नहीं? हमारा मल-मूत्र विसर्जन बराबर है अथवा नहीं? तथा उसमें कोई परिवर्तन तो दृष्टिगत नहीं होता आदि ऐसी अनेक बातें हैं जो शरीर की आन्तरिक स्थिति का हमें संकेत देती हैं। हाथ हमारा शरीर बायां-दायां, बाह्य रूप से एकसा क्यों? सिर में बाल और - पैरों की अंगुलियों के नाखून ही जीवनभर क्यों बढ़ते रहते है? हाथ और पाँव. की बनावट में एकरूपता क्यों? हमारे कान की आकृति गर्भावस्था में गर्भस्थ बालक के शरीर की स्थिति के अनुसार मिलती-जुलती क्यों? चित्र में हथेली का आकार सारे शरीर की बनावट कैसे इंगित करता है? शरीर के प्रत्येक अंग उपांग अथवा भाग की आकृति का विशेष महत्त्व होता. है परन्तु हमारा चिन्तन उस तरफ प्रायः नहीं जाता। शरीर का प्रत्येक भाग और अवयव शरीर के संचालन में सहयोग करता है। जब तक उसमें आपसी सन्तुलन, तालमेल बना रहता है, तभी तक हम स्वस्थ होते हैं। "संतुलन स्वास्थ्य का कवच हैं, तो असंतुलन रोगों का प्रवेश द्वार । जितना - जितना असन्तुलन व असहयोग बढ़ता जाता है, उतने- उतने स्वास्थ्य से व्यक्ति भटक जाता है । अतः प्रत्येक व्यक्ति 15
SR No.009380
Book TitleSwadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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