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________________ वृष्यः शीतोऽस्रपितघ्नः स्वादुपाकरसो रसः । । अर्थ : ईख का रस, गुरू, स्निग्ध, वृहण, कफ एवं मूत्र वर्धक शुक्रवर्धक शीतल, रक्तपित भोग नाशक विपाक एवं रस में मधुर होता है। विश्लेषण : सामान्यतः सभी प्रकार के ईखके रस का गुण यहाँ बताया गया है, पर विभिन्न ईख का गुण भिन्न-भिन्न रूप से होता है यद्यपि प्राचीन काल में ईख के जितने भेद पाये जाते थे वे अब नहीं मिलते हैं उनके स्थान पर नये-नये ईख को उत्पन्न किया गया है वर्तमान में प्राप्त होने वाली ईखों के रस में न पहले की तरह मधुरता है और न स्वाद है तथापि ईख जाति सामान्य होने से न्यूनादिक गुण उसमें पाये ही जाते हैं । सोऽग्रे सलवणों, दन्तपीडितः शर्करासमः । मूलाग्रजन्तुजग्धादिपीडनान्मलसङरात् । किञ्चित्कालं विधृत्या च विकृति याति यान्त्रिक । विदाही गुरुविष्टभी तेनासौतत्र पौण्डूकः । शैत्यप्रसादमाधुर्यैर्वरस्तमनु वांशिकः । शतपर्वककान्तारनैपालाद्यास्ततः क्रमात् । सक्षाराः सकशायाश्च सोष्णाः किञद्विदाहिनः । । अर्थ : ईख का गुणः- सभी प्रकार के ईख के अग्रभाग में लवण रस रहता है। यदि दाँत से उनको चूसा जाय तो चीनी के समान गुण कारक होता है। विना साफ किये हुये ईख को मूल, अग्रभाग और गाठों में कृमिया वर्तमान रहती है या कृमियाँ गाठों को खायी रहती है ऐसे संपूर्ण ईख को यन्त्र में पेरकर रस निकाला जाय तो उसमें गन्देभाग मिले रहते हैं। यदि उसे तत्काल छान कर पी लिया जाय तो विशेष हानिकर नहीं होता है, किन्तु कुछ काल रखने के बाद यन्त्र से निकाला गया रस विकृत हो जाता है । और विदाही, गुरू, और विष्टम्भि होता है ईख का भेद - (1) पौण्ड्रक - यह वीर्य में शीत मन में प्रसन्नता लाने वाला, रस में मधुर सभी ईखों में श्रेष्ठ होता है । (2) वांशिक - यह पौण्ड्क की अपेक्षा गुणों में हीन होता है । (3) शातपर्व (4) कान्तार (5) नैपाल आदि ईख्या क्रम से क्षार युक्त कषाय और उष्ण वीर्य होत हैं। और यह तीनों कुछ विदाह उत्पन्न करते हैं । विश्लेषण : सभी प्रकार के ईख में अग्रभाग में लवण रस मूल भाग में अधिक मधुर रस और मध्य में मधुर रस रहता है। जैसा कि सुश्रुत नेअतीव मधुरो मूले मध्ये मधुर एव च । अगैऽक्षिपु च विज्ञेर्य ईक्ष्णां लवणो रसः ।। 71
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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