SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ में सूर्य तीव्र होता है सौम्य रसों का एवं शरीर के सौम्य रसों का भी शोषण करता है । इसलिये शिशिर ऋतु में निर्वात स्थान और उष्ण घर में निवास करना चाहिये । और अन्य जो हेमन्त की विधियां हैं उन विधियों का पालन दृढ़तापूर्वक करनी चाहिए । कफश्चितो हि शिशिरे वसन्तेऽर्काशुतापित । हत्वाऽग्नि कुरुते रोगानतस्त त्वरया जयेत् ।। अर्थ : वसन्त ऋतुचर्या - शिशिर ऋतु में स्वभावतः कफ का संचय होता है । वसन्त में सूर्य किरणों से तप्त होकर अग्नि को नष्ट कर कफजन्य रोगों को उत्पन्न करता है। इसलिये शीघ्र ही कफ को दूर करने के लिये उपाय करना चाहिए। तीक्ष्णैर्वमननस्याद्यैर्लघुरुक्षैश्च भोजनैः । व्यायामोद्वर्तनाघातैर्जित्वा श्लेष्माणमुल्बरगम् ।। स्नातोऽनुलिप्तः कर्पूरचदनागुरूककुङ्कुमैः । अर्थ : कफ दूर करने का उपाय - तीव्र वमन नस्य आदि का प्रयोग लघु एवं रूक्ष आहार द्रव्यों का प्रयोग, व्यायाम अपटन आघात ( शरीर का मर्दन) कर. बढ़े हुए कफ पर विजय प्राप्त करें। प्रातःकाल स्नान के बाद कर्पूर मिला हुआ चन्दन का लेप एवं अगरू के धूप को शरीर में लगाकर केशर का लेप करें। पुराणयवगोधूक्षौद्रजाङ्गलशूल्यभुक् । सहकारसोन्मिश्रानास्वाद्य प्रिययाऽर्पितान् । प्रियाऽऽस्यसगंसुरमीन प्रियानेत्रोत्पलाङिक्तान् । सौमनस्यकृतो हृद्यान्वयस्यैः सहितः पिबेत् । निगदानासवारिष्टसोधुमार्डीकमाधवान् । शृगंबेराम्बु साराम्बु मध्वम्बु जलदाम्बुच | अर्थ : भोजन- इस काल में पुरान यव गेहूँ मधु जाइल तथा आम के रस से युक्त प्रिय स्त्री द्वारा स्वाद लेकर दिये गये, प्रिय स्त्री के मुख की वायु से सुगन्धित प्रिय स्त्री के नेत्र - रूपी कमलों से देखे गये, अच्छी प्रकार बनाये हुए हृदय के अनुकूल निर्गद आसवारिष्ट, सिंधु, द्राक्षारिष्ट माध्वीक को अथवा अदरख से युक्त जल अथवा विजयसार से वाशित जल या मधु और जल या नागरमोथा से पकाया हुआ जल मित्रों के साथ बैठकर पीवे । दक्षिरगानिलशीतेषु परितो जलवाहिषु । अदृष्टनष्टसूष्टेषु मरिगकुट्टिमकान्तिषु । परपुष्टविघुष्टेषु कामकर्मान्तभूमिष । 31.
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy