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________________ संभावना नहीं होती है। इससे मनुष्य की आयु नियमित और लम्बी होती है। स्नानमर्दित नेत्रास्यकर्व रोगा तिसारिषु । आध्य मानपीनसा जीर्ण भुक्तवत्सु च गर्हितम् ।। अर्थ : मुंह का लकवा, नेत्ररोग, मुख के रोग, कर्ण रोग, अतिसार, अजीर्ण आदि रोगोंसे पीड़ित व्यक्ति को स्नान का निषेध है । स्वस्थ व्यक्तियों को भोजन के आद कभी भी स्नान नहीं करना चाहिए। विश्लेषण : स्नान से शरीर में वायु की तत्काल वृद्धि होती है। यह वायु शरीर के भीतरी भाग में अवस्थित हो जाती है। अर्दित रोग वायु का रोग है । अतः इस अर्दित रोग में स्नान करने से वायु की और अधिक वृद्धि होती है । इसलिये अद्रित रोग में स्नान वर्जित है। नेत्र पितप्रधान होते हैं । पित्त आग्नेय होता है। स्नान करने से पित्त नेत्रों में अधिक पहुंचता है। इसलिये नेत्रों में गर्मी बढ़ जाती है। यदि नेत्रों में पहले से कोई रोग हो, तो गर्मी बढ़ जाने पर और नेत्रों की तकलीफ बढ़ जाती है। इसलिये नेत्र रोगों में स्नान नहीं करना चाहिए। मुंह के अन्दर वात, पित्त और कफ तीनों ही रहते हैं । यदि मुंह के रोग हों, तो स्नान करने से वात, पित्त और कफ का संतुलन बिगड़ने की संभावना होती है। इसलिये मुंह के रोगों में स्नान नहीं करना चाहिए। मुंह के अधिकतर रोग पित्त प्रकृति के होते हैं। कानों में वायु का स्थान है। स्नान करने पर कानों में वायु का प्रकोप बढ़ता है। इसलिये कानों के रोग होने पर स्नान नहीं करना चाहिए। अतिसार के रोग में अमाशय में पानी अधिक हो जाता है। इससे पित्त बढ़ जाता है। स्नान से शरीर की उष्मा अन्दर आ जाने से अतिसार रोग में वृद्धि हो जाती है। इसी तरह अजीर्ण रोग में अग्नि मंद हो जाती है। इसके कारण भोजन अधपका हुआ रहता है। इससे कफ का निर्माण होता है । अधपका भोजन कफ में वृद्धि करता है। स्नान करने से भी कफ में वृद्धि होती है । आमाशय में कफ की वृद्धि होने से जठरअग्नि और भी कम होती है। इसलिये स्नान को निषेध किया जाता है। भोजन के बाद जठराग्नि अन्न को पचाने में लगी रहती है। यदि भोजन के बाद स्नान किया जाय तो उष्मा अन्दर की ओर जाने से जरूरत से अधिक गर्मी आमाशय में हो जाती है। इसके चलते भोजन का पाचन समुचित नहीं होता है। अर्दित, मुखरोग, नेत्ररोग, कर्णरोग, आदि में यदि स्नान करना भी पड़े तो सिर पर नहीं करना चाहिए। गले से नीचे स्नान किया जा सकता है। जीर्णे हितं भितं चाद्यान्न वेगानीरयेद् बलात् न वेगितोडन्यकार्यः स्यान्नाजित्वा साध्यमामयम् ।। अर्थ : (स्वस्थ रहने के लिये)- पहले खाये हुये भोजन के पचने पर ही हितकर 20
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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