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________________ गमन, आदान, आनन्द, त्याग) इन तीनों का सम्यक योग ही स्वास्थ्य का कारण होता है। इसके विपरीत काल, अर्थ और कर्म का असंतुलन ही रोग का कारण होता है। विश्लेषण : काल, अर्थ, कर्म के असंतुलन का अर्थ है – बहुत कम या बहुत अधिक होना। जैसे काल में - वर्षा का बहुत अधिक होना या वर्षा का बहुत कम होना। इसी तरह ग्रीष्म का बहुत अधिक होना या बिल्कुल नहीं होना। कभी-कभी वर्षा का बहुत अधिक होना और अचानक से धूप बहुत तेज निकलना और फिर तीव्र वर्षा का होना। ये सभी काल असंतुलन के उदाहरण हैं। अर्थ से ज्ञानेन्द्रियों का विषय लिया जाता है। इनमें कर्णेन्द्रिय का विषय शब्द है। अत्यन्त कम (हीन) शब्दों का कर्णेन्द्रिय से संयोग होना हीन योग है। क्योंकि अत्यन्त हीन शब्दों को सुनने के लिये कानों पर अधिक बल पड़ता है। मिथ्या कानों से अप्रिय शब्दों का सुनना जैसे- तुम्हारे पुत्र की मृत्यू हो गयी है। तुम्हारे घर में चोरी हो गयी है। यह मिथ्या योग कहलाता है। इसी तरह एक अति योग होता है। जैसे कानों के पास कोई बन्दूक चलाये, इससे कान के पर्दे फट सकते है। यह अतियोग का उदाहरण है। . । स्पर्श के लिये हीन, मिथ्या और अति योग के उदाहरण- अत्यन्त शीत या उष्ण द्रव्यों का त्वचा से संयोग जिस समय गरम द्रव्यों का स्पर्श होता है उस समय उष्ण (गर्म) का अतियोग और शीत का हीन योग होता है। यदि कोई व्यक्ति गर्मी में चलकर आये और शीतल जल से स्नान करे तो यह त्वचा के लिये मिथ्यायोग होता है। इसी तरह त्वचा के ऊपर विभिन्न प्रकार के गन्दे द्रव्यों को स्पर्श होने पर मिथ्या योग होता है। रूप के लिये विभिन्न योगों के उदाहरण- आँखें, रूप का देखने का काम प्रकाश के संयोग से करती हैं। यदि प्रकाश नहीं हो तो उस समय आँखों से देखने या पढ़ने का कार्य किया जाय तो वह हीन योग माना जाता है। भीवत्स या अप्रिय घटनाओं को आँखों से देखना मिथ्या योग कहलाता है। सूर्य को देखना या अत्यधिक प्रकाश में देखना अति योग कहलाता है। . रस के लिये- किसी एक रस को अधिक मात्रा में सेवन किया जाय तो अतियोग होता है। और यदि बहुत कम मात्रा में रस का सेवन किया जाय तो हीन योग कहलाता है। सड़े-गले वासी अन्न को या फलों को खाना या विरूद्ध भोजन करना मिथ्या योग कहलाता है। गन्ध के लिये- अति तीव्र गन्धों को सूंघना जैसे कस्तूरी, अमोनिया गैस आदि अतियोग है। सुगन्धित वस्तुओं को नही. सूंघना हीन योग है।
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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