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________________ शाकानां प्रवरा न्यूना द्वितीय किच्चिदेवतु ।। कूष्माण्डतुम्बकालिगंकर्कोर्वैर्वारूतिण्डिशम् । तथा त्रपुसचीनाकचिर्भटं कफवातकृत् ।। भेदि विष्टम्यभिष्यन्दि स्वादुपाकरसं गुरू । वल्लोफलानां प्रवरं कूष्माण्डं वातपित्तजित् । । वस्तिशुद्धिकरं वृष्यं; त्रपुसं त्वतिमूत्रलमक् । तुम्बं रूक्षतरं ग्राहि कालिगंर्वारूचिर्भटम् ।। बालं पित्तहरं शीतं विद्यात्पक्वमतोऽन्यथा । प्रर्थ : कूष्माण्ड (कोहड़ा सफेद) तुम्ब ( अलावू-गोल लौकी) कालिगं (तरबूज ) कर्कारू (ककड़ी) एर्वारू (बड़ी ककड़ी) तिण्शि ( डिण्डीश) त्रपुष (खीरा) नाक ( खरबूज ) चिर्भट (फूट) ये शाक कफ और वातवर्द्धक मलभेदक, वेष्टम्भि, अभिष्यान्दि, रस और विपाक में मधुर और गुरु होते हैं । लता से उत्पन्न होने वाले इन सभी का गुण एकत्र समान्य रूप से. वर्णन किया गया है। विशेष रूप से इनका विशेष गुण अलग-अलग बताया जायेगा । वल्ली लता फलों में सबसे उत्तम पेठा होता है। यह बात पित्त शक वस्ति प्रदेश को शुद्ध करने वाला और बलकारक होता है । खीरा :- यह अधिक मूत्रल होता है । अर्थात् कूष्माण्ड आदि अल्पं मूत्रल होते हैं । तुम्ब (गोली लौकी) :- यह अधिक रूक्ष और ग्राही होता है। बताया है। तरबूज, बड़ी ककड़ी और फूट :--- यह सामान्य रूक्ष और मलग्राही होता है । लौकी आदि यदि कच्चे होते है तो पित्तनाशक और वीर्य में शीत होते है । वेश्लेषण : कोमल अपक्व कूष्माण्ड आदि सभी फल साग रूचिकारक, स्वादु, और शीतल होते हैं। जैसा कि सुश्रुत ने खीरा के विषय में बताया है कि नीलं यत् त्रपुषं वृष्यं पित्तहरंमतम् । तत्पाण्डु कफ कृत् जीर्णमस्रपित्तकरंस्मृतम । । अर्थ : कुछ लोग वाल शब्द का सम्बन्ध लौकी आदि से लेते है । किन्तु यह उचित नहीं प्रतीत होता क्योंकि कूष्माण्ड आदि को एक ही वर्ग में रखा गया है। और यह सभी फल हैं इसलिए कूष्माण्ड आदि सभी फल शाक कच्चे लाभदायक और पके फल उतम गुणकारक नहीं होते हैं शीर्णवृन्तं तु सक्षारं पित्तलं कफवातजित् ।। रोचर्न दीपनं हृद्यमष्ठीलाऽऽनाहनुल्लघु । 101
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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