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________________ वायु अति सूक्ष्म है जो किसी भी छोटे-से-छोटे स्थान में भी प्रवेश कर जाती है। वायु चलायमान है, इसलिये कभी स्थिर नहीं रहती है। पित्तं सस्नेहतीक्ष्णोष्णं लघ विस्त्रं सरं द्रवम अर्थ : पित्त के गुण - ईषत् स्निग्ध, तीक्ष्ण, उष्ण (गम), लघु, विस्त्र (जलने से पूर्व मृतशरीर की तरह गन्ध वाला), सर (चलने वाला), द्रव (पतला) जैसा पित्त होता है। स्निग्धः शीतोगुरूर्मन्दः श्लक्ष्नो मृत्स्नः स्थिरः कफः। अर्थ : कफ के गुण - स्निग्ध (चिकनाईयुक्त), शीतल, गुरूमन्द (अल्प या कम चलने वाला), श्लक्ष्ण (खारापन के साथ चिकना), मृत्स्न (मिट्टी की तरह गन्ध वाला). और स्थिर होता है। विश्लेषण : पित्त को बनने में अग्नि और जल की प्रधानता होती है। इसलिये पित्त को आग्नेय माना जाता है। कफ के निर्माण में पृथ्वी और जल की प्रधानता होती है। अतः पृथ्वी, जल, अग्नि आदि के सभी गुण इन दोषों में आते हैं। इसी तरह वात के निर्माण में वायु की प्रधानता होती है। रसासृझ्यांसमेदोऽस्थिमज्जशुक्राणि धातवः। सप्त दूष्याः-मला मूत्रशकृत्स्वेदादयोऽपिच।। अर्थ : धातुओं के प्रकार - रस, रक्त, मांस, मेदा, मज्जा, अस्थि, शुक्र आदि सात धातुयें होती हैं। ये सभी सात धातुयें शरीर में धारण होती है। वात, पित्त और कफ आदि दोषों द्वारा ये ही सात धातुयें दूषित होती है। मल, मूत्र और पसीना (स्वेद) ये तीनों शरीर को मलिन करते हैं। इसलिये इन्हें मल कहा जाता है। तीनों दोषों द्वारा भी ये दूषित होते हैं, इसलिये इन्हें भी दूष्य कहते हैं। विश्लेषण : शरीर के मूल धारक ये तीनों दोष, धातुयें और मल (पसीना, मूत्र, विष्ठा) ही हैं। आयुर्वेद में तीनों दोष, सात धातुयें और तीनों मलों को महत्वपूर्ण माना जाता है। इनमें से किसी एक में भी असंतुलन या विकृति पैदा हो जाये तो स्वस्थ रहना मुश्किल होता है। सात धातु और तीन मलों को मिलाकर. इस दूष्य (जिन्हें दूषित किया जाता है) कहलाते हैं। वात, पित्त, कफ ये तीन दोष हैं जो दूषित करते हैं। सात धातुओं के सम्यक पाचन से ही मलों की उत्पत्ति होती है। ये धातुयें ही मलों की जनक और मुख्य हैं। सभी धातुओं में जो दूषित पदार्थ होते हैं, उन्हें बाहर निकालना ही मलों का काम है। यदि शरीर से इन मलों का निष्कासन नहीं हो तो ये मल बहुत हानिकारक हो जाते हैं और शरीर को नष्ट कर देते हैं।
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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