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________________ रासायनिक परीक्षण तो मात्र शरीर में होने वाले भौतिक परिवर्तनों को बतलाने में। तनिक सहायता कर सकते हैं। आसपास का प्रदूषित वातावरण, पर्यावरण, अशुद्ध भोजन सामग्री, पानी और वायु रोगों का कारण हो सकते हैं। परन्तु शरीर की प्रतिरोध क क्षमता ठीक हो तो बाह्यय कारण अकेले रोगग्रस्त नहीं बना सकते.। जब रोग व्यक्ति के स्वयं की गलतियों से ज्यादातर पैदा होता है तो स्वास्थ्य को बनाए रखने तथा रोग होने पर रोगी की सजगता, भागीदारी, सम्यक चिन्तन और पुरूषार्थ का सर्वाधिक महत्त्व होता है। स्वास्थ्य क्या है? स्वास्थ्य का मतलब है- रोग-मुक्त जीवन । स्वास्थ्य तो तन, मन और। आत्मोत्साह के समन्वय का नाम है। अर्थात् शरीर, मन और आत्मा, तीनों जब ताल से ताल मिलाकर कार्य करें तथा शरीर की सारी प्रणालियाँ एवं सभी अवयव सामान्य रूप से स्वतंत्रता पूर्वक कार्य करें, किसी के भी कार्य में कोई अवरोध अथवा आलस्य न हो और न उनको चलाने के लिए किसी बाहरी वस्तु की आवश्यकता पड़ें। शरीर का तंत्र अपनी क्षमताओं का पूर्ण उपयोग से कार्य करे, मन का चिन्तन और आचारण सम्यक् हो, अर्थात् मन में बेचैनी न हो, सारे अंग और क्रियाएं सनतुलित हो, असन्तुलित न हों। सारी प्रवृत्तियाँ सहज और स्वाभाविक हो, अस्वाभाविक न हो। अर्थात् जिसका पाचन और श्वसन बराबर हो, नियमित हों, सन्तुलित हो। अनुपयोगी अनावश्यक विजातीय तत्त्वों का निष्कासन सही हो। भूख प्राकृतिक लगती हो। निद्रा स्वाभाविक आती हो। पसीना गन्धहीन हो, त्वचा मुलायम हो, बदन गठीला, कमर सीधी हो, खिला हुआ चेहरा एवं आँखों में चमक हो। नाड़ी मज्जा, अस्थि, प्रजनन एवं लसिका आदि सभी तन्त्र शक्तिशाली हों तथा अपना कार्य पूर्ण क्षमता से करने में सक्षम हो। जो आत्म विश्वासी, दृढ़ मनोबली, सहनशील, धैर्यवान, निर्भय, तनाव व चिन्ता मुक्त, साहसी और जीवन के प्रति उत्साही हो, जिसके मन में शान्ति हो.. सरलता हो। जिसका स्वचिन्तन, प्रज्ञा और स्वविवेक जागृत हो तथा जिसका मन और इंन्द्रियों पर पूर्ण नियन्त्रण हो, विचारों में पूर्वाग्रह न हो, सत्य के प्रति समर्पित हो, जो पूर्ण अहिंसक हो, स्वावलम्बी हो। जो निस्पृही तथा निरहंकारी हो। जिसकी प्राथमिकताएँ एवं लक्ष्य क्षमताओं के अनुरूप सम्यक हों तथा जो प्राकृतिक सनातन • नियमों का पलन करता हो। जिसके सारे कार्य समय पर होते हों तथा जीवन नियमबद्ध हो। वास्तव में पूर्ण स्वस्थता के मापदण्ड तो यही हैं। जितने–जितने अंशों में उपर्युक्त तथ्यों की प्राप्ति होगी उसी अनुपात में, सही स्वरूप में, हम स्वस्थता के समीप होंगे, इसके विपरीत स्थिति पैदा होने पर अपने आपको स्वस्थ मानना अथवा स्वस्थ बनाने का दावा करना न्याय संगत नहीं। 18 .
SR No.009375
Book TitleSwadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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