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________________ जन्म लेते हैं, वह धीरे-धीरे क्षीण होता जाता है। जीवन के अन्तिम क्षणों तक प्राण ऊर्जा के प्रवाह को संतुलित, नियन्त्रित एवं सही संचालित करके तथा उसका सही उपयोग करके ही हम शान्त, सुखी और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। स्वास्थ्य की उपयोगिता का आभास रोगावस्था में किसी वस्तु का मूल्य उसका अभाव होने पर ही पता लगता है। वस्तु का मूल्य समझे बिना उसका सदुपयोग बराबर नहीं किया जा सकता। ठीक उसी प्रकार स्वस्थ शरीर के महत्त्व का पता भी स्वास्थ्य के नष्ट हो जाने अथवा वृद्धावस्था आ जाने पर ही लगता है। संसार के सभी दुःखों का कारण अज्ञान है। इसी प्रकार सभी रोगों का कारण स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का पूर्ण और सही ज्ञान न होना तथा उनका उल्लंघन करना है। प्रकृति किसी भी ज्ञानी अथवा अज्ञानी को कभी क्षमा नहीं करती। . प्रायः वृद्धावस्था में तो स्वास्थ्य का महत्त्व प्रत्येक मानव को अनुभव होता ही है — क्योंकि, जवानी कभी लौट कर नहीं आतीं और बुढ़ापा कभी लौट कर नहीं जाता। . जीवन में स्वास्थ्य को प्राथमिकता क्यों आवश्यक?.. जीवन में पद, पैसा, प्रतिष्ठा आदि का महत्त्व है, परन्तु उसकी प्राप्ति हेत स्वास्थ्य की उपेक्षा कदापि उचित नहीं। परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्यों का निर्वाह आवश्यक है, परन्तु स्वयं के स्वास्थ्य को गौण कर नहीं। धन से हमें अच्छे से अच्छा भोजन मिल सकता है, परन्तु भूख नहीं। दवा मिल सकती हैं, परन्तु. स्वास्थ्य नहीं। भोग-विलास की वस्तुएँ मिल सकती हैं, परन्तु उनके भोगने की क्षमता नहीं। अच्छा पलंग मिल सकता है, परन्तु निद्रा नहीं। संसार के सारे वैभव एवं सम्पत्ति नष्ट होने के पश्चात् पुनः प्राप्त हो सकती है, परन्तु सवास्थ्य नष्ट हो जाने के पश्चात् उसका पुनः प्राप्त करना कठिन होता है। इसलिीए योगी हो या भोगी, दोनों को अपने-अपने उद्धेश्यों की प्राप्ति के लिए स्वस्थ शरीर व स्वस्थ मन. की आवश्यकता होती है। मानव के सारे क्रियाकलाप शरीर के आश्रित हैं तथा शरीर के अस्तित्व में आने पर ही प्रारम्भ होते हैं तथा उसके निष्प्राण होते ही समाप्त हो जाते हैं.। तभी तो उपनिषदों में कहा गया-शरीर माद्यं खलु धर्म साधनम। - मानव की जीवन-यात्रा इस शरीर रूपी वाहन द्वारा ही सम्पन्न होती है। यदि यह वाहन अच्छा और शक्तिशाली होगा तथा जीवन-यात्रा के दौरान इसकी उचित देखभाल की जाती रहेगी एवं क्षमता से ज्यादा भार डालकर इसका दुरूपयोग · नहीं किया जाएगा तो यह अपनी यात्रा निश्चित अवधि तक निर्विघ्न रूप से पूर्ण करेगा और इसमें यात्रा करने वाला मानव अधिक सुखद व लम्बी,यात्रा कर सकेगा. . . 15 . ....
SR No.009375
Book TitleSwadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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