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________________ सच्चाई को जानने, मानने के बावजूद अपनी विवशताओं, पूर्वग्रसित दृ ढ़ . मान्यताओं के कारण अस्वीकर भी कर सकते हैं। अधिकांश व्यक्ति दृढ़ इच्छाशक्ति एवं आत्मविश्वास.के अभाव में सम्यक् पुरूषार्थ न कर सकने के कारण चाहते हुए . भी स्वास्थ्य लाभ से वंचित रह जाएँ तो आश्चर्य नहीं। पुस्तक में जो अपूर्णता है, उसका कारण मेरा विषय के सम्बन्ध में अल्पज्ञान ही है। विचारों की स्पष्ट अभिव्यक्ति के पीछे मेरी भावना किसी भी चिकित्सा पद्धति का विरोध करना नहीं, अपितु 'चिकित्सा के क्षेत्र में उपेक्षित सनातन सत्य के प्रति अनेकान्त दृष्टिकोण से बिना किसी दुराग्रह, घृणा, सम्यक् चिन्तन हेतु जनसाधारण के विवेक को जागृत करने मात्र का है। मेरा प्रयास तो अपने अनुभवों को संकलन कर जनसाधारण के लाभ हेतु प्रचारित करना मात्र है। अतः सुज्ञ पाठकों के सम्यक सुझाव के साथ-साथ क्रियान्विति हेतु अपनाए जाने वाले उपाय सादर आमंत्रित हैं। - "सच्चा सो सबका-' के सिद्धान्तानुसार सुज्ञ पाठकों का सम्यक मार्गदर्शन एवं प्रतिक्रियाएँ भी .. आमन्त्रित हैं। . . . . . . . . यह एक चिन्तनीय प्रश्न है? ....... इसका विशद् विवेचन मिलेगा, इस पुस्तक के आरोग्य विज्ञान में जिसे पढ़कर मानव मनीषा में स्वास्थ्य के प्रति सच्ची समझ विकसित होगी। मानव दवाओं की दासता से मुक्त होगा। काश! ऐसा हुआ तो मैं मानूँगा कि मेरा श्रम, श्रेय की दिशा में सार्थक हुआ। मुझे विश्वास है कि यह परिणाम प्रयोगात्मक रूप में अवश्य परिणत .' होगा। क्यों कि भारतीय भ्रान्त ही नहीं, भद्र भी है। उनके पास पूर्वजों की स्वास्थ्य . वसीयत आरक्षित भी है। जैसे कि 1. सौ दवा-एक हवा, 2. दवा नहीं-दुआ लो 3. मन चंगा तो कठोती में गँगा 4, पहला सुख, निरोगी काया 5. एक तन्दुरूस्ती सो नियामत 6. पैर गरम, पेट नरम, सिर ठण्डा, फिर वैद्य आवे तो मारो डण्डा आदि-आदि। इससे स्पष्ट है कि भारतीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ प्राकृति. रहस्यों से सुपरिचितं है। इसी का ब्यौरा है इस पुस्तक में। ' प्रस्तुत पुस्तक को आद्यौपांत पढ़े, बिना सोचे-समझे शीघ्रता में निर्णय नहीं करें। मेरा यह लेखन मानव सवास्थ्य की समग्र चिन्ता के चिन्तन का परिणाम है। प्रस्तुत पुस्तक स्वास्थ्य प्रेमियों के लिए प्रकाश स्तम्भ का कार्य करेगी जिससे स्वास्थ्य के नाम पर भूले-भटके लोगों को सही मार्ग का बोध होगा। पुस्तक स्वास्थ्य प्राप्ति के लक्ष्य में मील का पत्थर बने, पाठकों को अपने अपने स्वास्थ्य के प्रति सजगता जगाने का मापदण्ड बने, ऐसी मंगल कामना है। " . विभिन्न चिकित्स पद्धतियों से जुड़े चिकित्सकों से विनम्र अनुरोध है कि वे अपने और अपनी चिकित्सा के अहंकार को छोड़ व्यापक दृष्टिकोण अपनाएँ ताकि पीड़ित मानवता की सहज, सस्ती, स्थायी, स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध हो सकें। .. - मैं आभारी हूँ मेरे स्वर्गीय माता-पिता एवं स्वर्गीय जैनाचार्य हस्तीमलजी.
SR No.009375
Book TitleSwadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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