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________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र अंगुली के साथ शीर्ष रेखा छोटी हो, शुक्र पर्वत उठा हुआ हो तो हर प्रकार से व्यक्ति लापरवाह और असावधान होता है। इस अंगुली की पहली गांठ बड़ी हो तो भाग्य व्यक्ति को सहारा नहीं देता उसकी आर्थिक स्थिति भी कुछ कमजोर होती है। दूसरी गांठ से कठिनाइयों में जूझने वाला होता है यदि कोई भी गांठ न हो तो उच्च विचारों वाला व व्यक्ति प्रतिष्ठित होता है। मध्यमा अंगुली का नाम शनि की अंगुली भी है। इसके तीन पोरों पर मकर, कुम्भ और मीन राशियां स्थित होती है। अंगुली के जोड़ पुष्ट व लम्बे होने से व्यक्ति गणित का अच्छा जानकार होता है। मध्यमा का ज्यादा पुष्ट होना और लम्बी होना और इसके साथ ही शनि का पर्वत भी उठा हुआ हो तो व्यक्ति में सहनशीलता बिलकुल नहीं होती। मध्यमा अंगुली के टेढ़ी रहने से मनुष्य की प्रकृति भययुक्त बनी रहेगी तथा वह हमेशा रोगी रहेगा। मध्यमा अंगुली का अग्रभाग यदि चौड़ा हो तो वह मनुष्य को गौरवशाली बनता है। ऐसे जातक किसी काम को आरम्भ करने से पहले अच्छी तरह सोच लेते हैं और व्यापार, दलाली, कोई भी उद्योग करने से उसकी विस्तृत जानकारी तथा अन्य वातावरण आदि सब बातों पर गौर करता है। वह अचानक किसी काम को बिना पूरा सोचे समझे न करता है और न उसमें हाथ डालता है। शनि पृथ्वी पर शासन करता है, अतः खानों में काम करने वाले, किसान, जमीन के दलाल, बागवान आदि से जुड़े लोगों की यह अंगुली अच्छी होती है तथा उनका दूसरा पोर शेष दोनों से कुछ लम्बा होता है। पौर्वात्य पद्धति से मध्यमा अंगुली का पहला पोर कुछ लम्बा हुआ तो वह आदमी अन्धश्रद्धा वाला और हर समय उदास तथा खिन्न स्वभाव का रहता है। दूसरा पोर लम्बा होने पर कृषि तथा मशीनरी के काम में रुचि होती है। दूसरा पोर लम्बा भी हो तथा चिकना तथा साफ हो तो भूत विद्या, योग, चिकित्सा तथा जादू टोने में ज्यादा रुचि होगी। तीसरा पोर लम्बा होने से व्यक्ति समाज में आदरणीय, मितव्ययी तथा लोकप्रिय होता है। 53
SR No.009374
Book TitleSaral Samudrik Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunkumar Bansal
PublisherAkhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh
Publication Year
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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