________________
The Line of Life
जीवन या आयु रेखा
हस्त रेखा पद्धति में अंगूठे के तीसरे पोर को घेरने वाली रेखा आयु रेखा कहलाती है। अगर यह रेखा दोनों हाथों में स्पष्ट रूप से गोलायी युक्त हो तो आयु का निश्चित प्रमाण भली प्रकार आंका जा सकता है। यहां एक प्रश्न बड़ा रोचक सामने आता है कि जीव के साथ कर्म भी बुरी तरह चिपका होता है । ऐसी स्थिति में भाग्य को कैसे जाना जाय तो यह जानना भी आवश्यक हो जाता है कि कर्म भी दो प्रकार के होते हैं, निवार्य और अनिवार्य यानी जिसका निवारण हो सके और दूसरा जो जरुरी है।
जैसे- कभी-2 किसी हाथ में संतान रेखा नहीं होने से यह स्पष्ट है कि उसके भाग्य में संतान नहीं है परन्तु उससे सम्बन्धी निवार्य कर्म करने से यानी किसी प्रकार का अनुष्ठान, उपाय आदि करने से उसे पुत्र या पुत्री की प्राप्ति होती है।
भारतीय शास्त्रों और धर्म ग्रंथों में इसके अनेक प्रमाण पाये गये हैं। जैसे महाराजा दशरथ का तीन विवाह हुआ। परन्तु संतान न होने से वे उसका निवार्य कर्म किये जिसका नाम पुत्रेष्टि यज्ञ था। भारतीय दर्शन कर्म को प्रधान मानता है, कर्म करना और आगे प्रगति करना मनुष्य का लक्ष्य है, इसमें हस्तरेखा अत्यन्त सहायक है।
भारतीय पौर्वात्य पद्धति में इस आयु रेखा को पितृ रेखा भी कहते हैं। यह 11 प्रकार की मानी गयी है:- गज रेखा, सगूढ़ देहा, विगूढ़ देहा, परगूढ़ देहा, निगूढ़ देहा, अतिलक्ष्मी सुख भोग दात्री, कुबुद्धिकारी, सर्वसौख्य विनाशिनी तथा गौरी,, रमा। मनुष्य अपने आयु काल में ही भौतिक सुखों दुखों का भोग करता है। आयु ही मनुष्य का जीवन है। अतः आयु रेखा ही हस्त रेखाओं में प्रधान रेखा है।