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________________ मंत्र यंत्र और तंत्र मनि प्रार्थना सागर आचार्य अकलंक देव पर कुसुमांडिनी देवी प्रसन्न थी और उन्होंने कुसुमांडिनी देवी को सिद्ध कर लिया था। ब्रह्म नेमीदत्त आराधना कथाकोश और मल्लिषेण प्रशस्ति से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि अकलंक देव ने हिम-शीतल राजा की सभा में शास्त्रार्थ करके तारा देवी को परास्त किया था। आचार्यों के पश्चात् देश में भट्टारकों का युग आया और वे ६००-७०० वर्षों तक समाज में सर्वाधिक प्रतिष्ठा एवं सम्मान को प्राप्त हुए। वह मंत्रों के विशेष साधक होते थे। सूरत शाखा के भट्टारक मल्लिभूषण ने पद्मावती देवी की आराधना की थी, तथा लाडबागड गच्छ के भट्टारक महेन्द्रसेन ने क्षेत्रपाल को सम्बोधित किया था। मंत्र साधना द्वारा भट्टारक सोमकीर्ति ने पावागढ़ में और भट्टारक मलयकीर्ति ने आंतरी में यह चमत्कार किया था कि सरस्वती की पाषण मूर्ति के द्वारा दिगम्बर सम्प्रदाय का प्राचीनत्व सिद्ध किया। भट्टारक प्रभाचन्द्र तुगलक वंश के शासन काल में हुए जिन्होंने देहली विहार के समय बादशाह के पंडित राधोचेतन से शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त की मंत्र शक्ति से पालकी का आकाश गमन, अमावस्या का पूर्णिमा में परिवर्तन, एवं कमण्डलु में जल को विपक्षी द्वारा मदिरा में परिवर्तन कर देने पर उसे पुष्पों में परिवर्तन कर देने जैसे अनेक चमत्कार किये थे। आचार्य सोमकीर्ति काष्ठासंघ के ८७वें भट्टारक थे संवत् १५१८ आषाढ़ शुक्ल अष्टमी को भट्टारक पद पर अभिषिक्त हुए और सुलतान फिरोजशाह के शासन काल में पावागढ़ में पद्मावती देवी की कृपा से आकाश गमन का चमत्कार दिखाया था। भट्टारक जगत्कीर्ति संवत् १७४५ में चांदखेड़ी प्रतिष्ठा महोत्सव में, जब एक श्वेताम्बर यति द्वारा रथ को मंत्र से कील दिया गया तब भट्टारक जगत्कीर्ति जी ने अपने मंत्र शक्ति के प्रभाव से रथ को बिना हाथियों के ही चला दिया था। संवत् १७६१ में करवर (हाड़ौती) प्रतिष्ठा महोत्सव में कुछ यतियों ने अपनी मंत्र शक्ति से खाद्य पदार्थ को आकाश में उड़ा दिया तब भट्टारक जगत्कीर्ति ने अपने कमण्डलु में से पानी छिड़क कर विघ्न शान्त किया और सामग्री को वापिस गिराया था। आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व महान आचार्य श्री अर्हद्वलि जी महाराज ने दक्षिण भारत के समस्त दिगम्बर संतों का सम्मेलन किया था, तब वहीं से श्रुत संवर्धन हेतु धरसेन आचार्य ने दो साधुओं को बुलवाया था। और जब पुष्पदन्त भूतबलि दो महाराज आए तो उनकी ज्ञान परीक्षा के लिए महान मंत्रवेत्ता आचार्य धरसेन महाराज ने उन दोनों मुनिराजों को दोष पूर्ण मंत्र सिद्ध करने को दिये थे, लेकिन उन महान ज्ञानी 21
SR No.009370
Book TitleMantra Yantra aur Tantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, L000, & L020
File Size1 MB
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