SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय-1 गुणस्थान (ऐतिहासिक पक्ष तथा गुणस्थान से जुड़े तत्त्व चिंतक घटकों का विश्लेषण) भमिका विश्व के सभी धर्मो एवं विचारधाराओं में भारत के धर्मों एवं विचारधाराओं की एक विशिष्ट महत्ता है। भारतीय चितंन परम्परा मुख्य रूप से दो भागों में विभक्त है- वैदिक परम्परा और श्रमण परम्परा। वैदिक परम्परा प्रवृत्तिमार्गी है इसमें यज्ञ यज्ञादि करके इष्टदेवों को प्रसन्न कर आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति के साथ-साथ भौतिक सुख की भी कामना की जाती है। पूरा वैदिक वाङमय इसी पर केन्द्रित है। इसके दो भाग हैं- कर्मकांड और ज्ञानकांड। कर्मकांड यज्ञादि की विधि-प्रविधि का विवरण देते हैं। इसमें देवों को प्रसन्न कर भौतिक और आध्यात्मिक सुख पाने की चेष्टा की जाती है जबकि ज्ञानकांड में जीव, परमात्मा जगत, जीव का जगत विशाद संबन्ध इत्यादि विषयों पर चितंन किया जाता है तथा श्रमणपरम्परा पूर्णरूप से निवृत्तिमार्गी है । इसमें मुख्यरूप से दो धर्मों का समावेश होता है- जैनधर्म और बौद्धधर्म। वैसे तो महावीर स्वामी के समय में 356 धर्म- सम्प्रदाय विदयमान थे। ये दोनों ही धर्म मुख्य रूप से इस संसार को छोड़कर जन्म और मरण के चक्र से छुटकारा पाकर चिरस्थाई सुख की प्रप्ति के लिए प्रयत्न करने में विश्वास करते हैं जिसे मोक्ष कहा जाता है। विशेष रूप से जैन परम्परा यह मानती है कि संसार में जीव का आना पूर्व-जन्म का परिणाम है। जीव जब तक संसार में रहेगा तब तक शास्वत सुख की प्राप्ति नहीं होगी मोक्ष पाकर ही उसे शास्वत सुख की प्राप्ति हो सकती है मोक्ष ही चरम लक्ष्य है। इस चरम लक्ष्य को पाने के लिए जैन मनीषियों ने छः द्रव्य कहे हैं- जीव, अजीव, पुदगल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल। यह ब्रह्मांड दो भागों में विभक्त है- लोकाकाश और अलोकाकाश। ये छहों द्रव्य लोकाकाश में पाये जाते है। इस जगत में सात तत्त्व होते हैं- जीव, अजीव, आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष। गुणस्थानों की गति के साथ इनका सहसम्बनध देखने को मिलता है। गुणस्थान का ऐतिहासिक पक्ष गुणस्थान आध्यात्मिक विकास यात्रा के सोपानों का एक क्रमबद्ध समुच्चय है जिसमें गुणस्थान के सैद्धान्तिक व व्यावहारिक पक्ष तथा कर्म एवं कर्मफल आदि के प्रतिमानों की स्पष्टता की गई है। भारतीय दर्शन के लगभग हर प्रमुख दर्शन में आध्यात्मिक उन्नति की सैद्धान्तिक स्थितियों को समझाया गया है। गुणस्थान एवं उसमें वर्णित 14 स्थितियों को जैन दर्शन में स्थान मिला है। इसकी दो प्रमुख परम्पराएं हैं- श्वेताम्बर और दिगम्बर। श्वेताम्बर परम्परा में 14 आवश्यक नियुक्तियां अस्तित्व में है किन्तु गुणस्थान का उल्लेख नहीं मिलता है। 7वीं सदी की कृति 'आवश्यक चूर्णि' में सर्व प्रथम इसका जिक्र किया गया है। समवायांग में 14 स्थितियों का उल्लेख है किन्तु उसे जीवठाण
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy