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________________ वाला है। वह सकल संयमी भी कहा जाता है और लब्धि का धारक होता है। इसके आधार पर उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य तीन प्रकार के भेद कहे गये है। अहिंसा महाव्रत छः विशेष गुण, सत्य महाव्रत, अचौर्य महाव्रत, ब्रह्मचर्य महाव्रत तथा अपरिग्रह महाव्रत का इनका पालन साधक मुनिराज करते हैं तथा 5 समितियों का आचरण करते हैं1-ईर्या समिति- जीवों की रक्षा के लिए सावधानी पूर्वक चार हाथ आगे की भूमि देखते हुए आगे चलना। 2-भाषा समिति- हित-मित ,मधुर और सत्य वचन ही कहना अन्यथा मौन रहना। 3-एषणा समिति- निर्दोष एवं अहिंसक साधनों व द्रव्यों से प्राप्त उदगमादि 46 दोष रहित सभी प्रकार से सर्वथा निर्दोष आहार ग्रहण करना। 4-आदान निक्षेपण समिति- किसी भी वस्तु को सावधानी से उठाना व रखना जिससे सूक्ष्म जीव जन्तुओं का भी घात न हो। 5-प्रतिष्ठापन्न समिति या व्युत्सर्ग समिति- मल मूत्र आदि को ऐसे स्थान पर विसर्जित करना जिससे जीवोत्पत्ति न हो और सूक्ष्म व स्थूल जीव राशि का घात न हो। सामायिक, स्तवन अर्थात तीर्थंकरों का गुणानुवाद, वंदना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग एवं प्रत्याख्यान मुनियों के षट् आवश्यक कहे गये हैं। वे पन्चेन्द्रिय निरोध करते हैं सात विशेष गुण- स्नान त्याग. भूमिशयन, केश लोंच, एक भुक्ति - दिन में एक बार भोजन करना आदि को दृढ़ता से जीवन में उतारते हैं उदुत्थमणे काले णालितिय वज्जिय हिमगज्झहिम। एक हिम दुअ तिअ वा मुहुत्तकालेण मत्तं तं।। आ.35. 811 93011 स्थित भोजन- साधुगण पैरों के बल खड़े होकर अपने ही हाथों रूपी पात्र में बिना स्वाद लिए भोजन करते हैं। अचेलकत्व- दिशा ही है अम्बर जिनके वही अचेलक माना जाता है अतः सर्व परिग्रह का त्याग अचेलकत्व है। छठवें गुणस्थानवर्ती मुनियों के आहार सम्बन्धी 46 दोष उदगम दोष (16), उत्पादन दोष(16), आहार दोष(14), (दाता और पात्र दोष जनित) उदगम दोषों का स्वरूप या उपभेद1- आंदेशिक दोष- संयमी मुनिराज के निमित्त भोजन बनाना 2- अध्याधिदोष- संयमी मुनिराज को देखकर भोजन तैयार करने का आरम्भ करना पूत्तिदोष- प्राशुक भोजन में अप्राशक द्रव्य मिलाना मिश्र दोष- उपरोक्त दोषयुक्त भोजन पात्र अपात्र को एक साथ कराने का ध्येय स्थापित दोष- अपने घर में जिस बर्तन में भोजन पकाया हो उसे दूसरे घर में अन्य बर्तन में रखना 6- बलि दोष- कुदेवादि निमित्त बना भोजन । 7- प्रावर्तित दोष- पात्र की नवदा भक्ति (भोजन पूर्व) में शीघ्रता या विलम्ब करना
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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