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________________ 2 प्रमुदिता- यह शील विशुद्धि की प्राथमिक अवस्था है जिसे बोधिचित्त प्रस्थान भी कहा जाता है। जैन परम्परा में इसकी तुलना पाँचवें और छठे गुणस्थान से की जा सकती है जिसमें चारित्र विशुद्धि हेतु संयम पालना होता है। साधक को बोध रहता है कि उसे नियत कर्मों का फल भोगना ही है अतः शुद्ध चित्त व शील (चर्या) को संतुलित वनाये रखने का पुरुषार्थ यहाँ होता है। 3- विमला- यहाँ साधक ( बोधिसत्व) अनैतिक आचरण से पूर्णतया मुक्त हो जाता है। दुःखशीलता के सम्पूर्ण नष्ट होने से परम शक्ति अर्थात विमलमति का प्राकट्य विमलावस्था है। इसकी तुलना अप्रमत्तसंयत नामक सातवें गुणस्थान से की जा सकती है। 4 प्रभाकरी - इस अवस्था में साधक समाधिशक्ति से अपने अलौकिक ज्ञान का प्रकाश लोकहित में संसार में फैलाता है। इसमें भी सातवें गुणस्थान समकक्ष विशिष्टताओं का समावेश दृष्टिगत होता है। 5- अर्चिष्मती- इस भूमि में क्लेशावरण व श्रेयावरण (द्वेष-राग ) का दाह होता है इसलिए इसकी तुलना अपूर्वकरण नामक आठवें गुणस्थान से की जा सकती है। इस भूमि में साधक वीर्य परमिता का अभ्यास करता है। 6- सुदुर्जया - इस भूमि नें साधक ध्यान पारमिता का अभ्यास करता है। जैन दर्शन में इसकी तुलना आठवें से ग्यारहवें गुणस्थान के साथ की जा सकती है। यह अत्यन्त दुष्कर कार्य है। 7- अभिमुखी- इस भूमि में प्रज्ञा का उदय होने से साधक निर्वाणोन्मुख हो जाता है लिए संसार व निर्वाण में भेद नहीं रहता । पूर्णता की इस स्थिति की तुलना सूक्ष्म- साम्पराय नामक 10वें गुणस्थान से की जा सकती है। 8 दूरंगमा- यह साधक की निर्वाण प्राप्ति की योग्यता को दर्शाती है। यह अवस्था साधक के मन से संकल्प विकल्प व पक्षवादिता को दूर कर निर्मल शून्यता से साक्षात्कार कराती है जो साधना की पूर्णता का द्योतक है जो 12वें गुणस्थान से की जा सकती है। 9 अचला- संकल्प शून्य, विषयरहित, समाधियुक्त साधक की यह अचला अवस्था है। यहाँ चित्त की चंचलता समाप्त हो चुकी होती है । इसकी तुलना सयोग केवली नामक 13वें गुणस्थान से की जा सकती है। 10. साधुमती- यहाँ बोधिसत्व में समस्त प्राणियों के प्रति निर्मल भाव, विश्लेषणात्मक अनुभव करने वाली बुद्धि (प्रतिसविन्मति) की प्रधानता रहती है। यह अवस्था कमोवेश 13वें गुणस्थान से तुलनीय है। 148
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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