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________________ ओर अभिप्रेरित होने हेतु कमोवेश वातावरणीय अनुकूलता का मुहताज था किन्तु अब ऊपर के गुणस्थानों में वह वातावरण को अपने अनुकूल करने में सिद्धहस्त कर्मयोगी बन जाता है तथा अंतिम आनन्द स्वरूप दशा में वह निष्कामपने को धारण कर ला ो जाता है। कर्म क्षय की तीन उपलब्ध पद्धतियों (क्षय, उपशम व क्षयोपशम) में से किसी एक की पसंदगी भी मन की दृढ़ता व परिपक्वता का ही विषय है क्योंकि गुणस्थानों में चढ़ते जाना या फिर चढ़कर गिरना इसी मनोस्थिति की ही फिदरत है। 9वें- 10वें गुणस्थान में अधिकांश कषायादि परिणामों पर जय पाकर अंतिमावस्था में पहुँचना तय सा हो जाता है (यदि उसने उपशम का सहारा नहीं लिया हो) शेष बचे सूक्ष्म लोभ की तुलना डॉ. टाटिया अवचेतन शरीर के प्रति रहे हुए राग के अर्थ में करते हैं। संकल्प-विकल्प रहित मानसिक तैयारी की मानसिकावस्था क्षीणमोह नामक 12वें गुणस्थान से तुलनीय है। मॉस्लो की आवश्यकताक्रम अभिप्रेरण विचारधारा के अनुसार भी स्व की मंजिल की ओर प्रयाण का यह एक परिपक्व आखिरी मुकाम है । इसके बाद देह अस्तित्व के कारण योग बन्ध तो होता है किन्तु क्षणिक। यह आध्यात्मिकता को भोगने की स्थिति है। योग निरोध व मानसिक चंचलता का अभाव स्थिरता पूर्ण शुक्ल ध्यान की अवस्था का पर्याय है 14वाँ अयोग केवली गुणस्थान जहाँ शिवपद ब्रह्म या मोक्ष से आत्मा का मिलन होता है। ***** 132
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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