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________________ ऊपर की सर्वोत्कृष्ट स्थिति है जिसमें सिर्फ आंतरिक संतुष्टि हेतु कार्यों की प्रेरणा ही अभिप्रेक होती है। इसे आठवें से ऊपर के गुणस्थानों के साथ सम्बद्ध किया जा सकता है। (ब) हर्जबर्ग की अभिप्रेरण विचारधाराहर्जबर्ग की अभिप्रेरण विचारधारा आवश्यकतापूर्ति के नियतक्रम सिद्धांत का खण्डन करती है एवं अभिप्रेरकों को दो भागों में वर्गीकृत करती है-आरोग्य या अनुरक्षण घटक (Hygiene or Maintenance factors) आरोग्यलक्षी घटकों के अवयवों में वातावरणीय दशाएं, नीतिगत नैतिक प्रतिमान तथा विधान एवं व्यवस्थाओं आदि को सम्मिलित किया जाता है। हर्जबर्ग मानते हैं कि ये आरोग्य तत्त्व अच्छी प्रेरणा के लिए तो बहुत आवश्यक हैं किन्तु वे स्वयं कोई प्रेरणा नहीं दे सकते। इन तत्त्वों के बढ़ने से अभिप्रेरणा तो नहीं बढ़ती किन्तु इनका प्रमाण घटने से कमी अवश्य आती है। जैन दर्शन के सैद्धान्तिक व व्यावहारिक पक्ष में वातावरणीय प्रासंगिकता को कुछ इस तरह स्वीकार किया जाता है कि व्यक्ति को श्रावक-साधु व साधकोन्मुखी बनाने में वातावरणीय घटकों की अहम् भूमिका होती है। ये घटक ही जीव को गुणस्थान पथ पर आरूढ़ करने एवं रुचि के साथ इस पथ का दृढ़ राही बनाए रखने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती -अभिप्रेरक घटक (Motivators) इस विचारधारा के प्रणेता प्रो. हर्जबर्ग का मानना है कि लक्ष्योन्मुख दिशा में आगे बढाने व उसमें स्थिर चित्त करने तथा प्रेरणारूप सिद्ध होने में कुछ प्रमुख अभिप्रेरकों की अहम् भूमिका होती है। ये घटक हैं- उपलब्धियाँ, उपलब्धियों की मान्यता, चुनौतीपूर्ण कार्य-स्वरूप तथा सतत उन्नति एंव विकास। गुणस्थानक विकास-यात्रा में ये घटक निश्चयरूप से अभिप्रेरक हैं यथा प्रथम दो घटक शुद्ध बाह्याचरण की दिशा में प्रेरणा स्वरूप हैं जबकि शेष अग्रिम आत्म् विशुद्धि की आन्तरिक उन्नति में। ये घटक उसकी साधना स्तर को ऊँचा उठाए रखने में मदद स्वरूप हैं। इसके अलावा अमेरिकन मनोविज्ञानी डगलस मेक्ग्रेकर ने मानवीय व्यवहार को संचालित करने वाली दो परस्पर विरोधी अभिप्रेरक विचारधाराओं का प्रतिपादन किया है जिन्हें एक्स (x) और वाई विचारधारा (y) के रूप में जाना जाता है। अभिप्रेरक के प्रथम स्वरूप में आपने स्पष्टता की है कि यदि व्यक्ति पर अंकुश न रखा जाय या उसे डर अथवा भय न दिखाया जाय तो वह नियत कार्य को सम्पादित करने का अभिप्रेरण प्राप्त नहीं करता। अभिप्रेरक के द्वितीय स्वरूप में मेक्ग्रेकर ने उन लोगों को रखा है जो दण्ड या भय के स्थान पर प्रशंसा व उपलब्धि जनित सकारात्मक वृत्तियों से प्रेरित होकर लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ते जाते हैं। 122
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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