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________________ जो जीव ज्ञानावरणादि आठ कर्मों से रहित है, सम्यक्त्व आदि आठ गुणों के धारक हैं तथा अंतिम शरीर से कुछ कम हैं वे सिद्ध हैं और ऊर्ध्व गमन स्वभाव से लोक के अग्रभाग में स्थित हैं, नित्य हैं तथा उत्पाद और व्यय इन दोनों से युक्त हैं। अजीव द्रव्यों का वर्णन अज्जीवो पुण णेयो पुग्गलधम्मो अधम्म आयासं। कालो पुग्गल मुत्तो रूवादिगुणो अमुत्ति सेसा दु।।15।। द्र. सं.।। पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश तथा काल इन पाँचों को अजीव जानना चाहिए। इनमें पुद्गल तो मूर्तिमान है। क्योंकि रूप आदि गुणों का धारक है। और शेष (बाकी) के चारों अमूर्त हैं। पुद्गल द्रव्य के लक्षण सद्दो बंधो सुहमों थूलो संठाणभेदतमछाया। उज्जोदादवसहिया पुग्गलदव्वस्स पज्जाया || 16।। द्र. सं.।। शब्द, बन्ध, सूक्ष्म, स्थूल, भेद, तम छाया, उद्योत और आतप आदि ये सब पुद्गल द्रव्य के पर्याय होते हैं। यहाँ सद्दो बंधो का अर्थ रूप, रस गंधादि चार पुद्गल पर्यायों से लिया गया है। धर्म द्रव्य के लक्षण गइपरिणयाण धम्मो पुग्गलजीवाण गमण सहयारी। तोयं जह मच्छाणं अच्छंता णेव सो णेई।। 17।। द्र. सं.।। पुद्गल व जीव के गमन में जो सहायक है वह धर्म द्रव्य है जैसे मछली के गमन में जल सहकारी है। और गमन न करने वाले पुद्गल व जीवों को धर्म द्रव्य कदापि गमन नहीं कराता है। अधर्म द्रव्य के लक्षण ठाणजुदाण अधम्मो पुग्गलजीवाण ठाणसहयारी। छाया जह पहियाणं गच्छंता णेव सो धरई।।18।। द्र. सं.।। स्थित सहित जो पुद्गल और जीव हैं उनकी स्थिति में सहकारी कारण अधर्म द्रव्य है। जैसे पथिकों की स्थित या ठहराव में छाया सहकारी है। गमन करते हुए जीव तथा पुद्गल को अधर्म द्रव्य नहीं ठहराता है। आकाश द्रव्य के लक्षण अवगासदाणजोग्गं जीवादीणं वियाण आयासं। जेण्हं लोगागासं अल्लोगागासमिदि दुविहं।।19।। द्र. सं.।। धम्मा धम्मा कालो पुग्गलजीवा य संति जावदिये। आयासे सो लोगो तत्तो परदो अलोगुत्तो।।20।। द्र. सं.।। जो जीव आदि द्रव्यों को अवकाश देने वाला है वह आकाश द्रव्य है। इसके दो भेद हैंलोकाकाश व अलोकाकाश। धर्म, अधर्म, काल, पुद्गल व जीव ये पाँचो द्रव्य जितने आकाश में हैं वह तो लोकाकाश है और उस लोकाकाश के आगे अलोकाकाश है। 110
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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