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________________ काल चक्र : जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में इन विषयों को लेकर मन में कुछ जिज्ञासायें शेष रह जाती हैं, यहाँ उनका यथोचित समाधान करने का प्रयास किया जा रहा है। वर्तमान में कौनसा काल - उत्सर्पिणी या अवसर्पिणी ? जैन आगमों के अनुसार वर्तमान में अवसर्पिणी काल चल रहा है। यह काल हास/गिरावट का काल होता है; परन्तु आज मानव जाति हर क्षेत्र में विकासोन्मुख ही नहीं, बल्कि विकासशील दिखाई देती है। ऐसी स्थिति में आगमानुसार वर्तमान काल हास का काल (अवसर्पिणी) है - यह बात स्वीकार करना अथवा गले उतारना सहज नहीं है। इसे आज के भौतिकवादी युग में सिद्ध करना भी एक चुनौतीभरा कार्य है। अष्टापद रिसर्च इंटरनेशनल फाउण्डेशन द्वारा दिनांक 15-16 दिसम्बर, 2012 को अहमदाबाद में आयोजित सेमीनार में जब मैंने "अवसर्पिणी काल और वर्तमान दुनिया" विषय पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया तो वहाँ मौजूद नासा एवं इसरो से जुडे अनेक वैज्ञानिकों ने वर्तमान काल को अवसर्पिणी मानने में आपत्ति व्यक्त की। पत्र वाचन के उपरान्त अनेक सवाल-जवाब, तर्क-वितर्क हुये। उनका कहना था कि - _ "वर्तमान में उत्सर्पिणी काल चल रहा है। वर्तमान काल हास का नहीं; विकास का काल है। यह विज्ञान का युग है। नई-नई मशीनें, कैलकुलेटर, कम्प्यूटर, इंटरनेट इत्यादि की खोज मनुष्य की प्रगति की द्योतक हैं। आज के 100 वर्ष पहले लाइटें नहीं थी, आवागमन के साधन सुलभ नहीं थे। मोबाइल, टेलीविजन, ए.सी आदि सुख-सुविधायें नहीं थी। पहले के लोगों का रहन-सहन
SR No.009364
Book TitleKaalchakra Jain Darshan ke Pariprekshya me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanjiv Godha
PublisherA B D Jain Vidvat Parishad Trust
Publication Year2013
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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