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________________ 50 काल चक्र : जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में राज्याभिषेक आदि का उल्लेख तो मिलता है, परन्तु इनकी मृत्यु कहाँ/ कैसे हुई, इस विषय में कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता।150 वीर निर्वाण के 683 वर्ष बाद तक अंग एवं पूर्वो के ज्ञाता मुनिराजों द्वारा श्रुत परम्परा चलती रही, फिर आचार्य लोहार्य के पश्चात् कोई आचारांग के धारक नहीं हुये। किन्तु फिर भी आगे 20,317 वर्षों तक (683+20317) श्रुततीर्थ परम्परा हीयमानरूप से चलती रहेगी। तत्पश्चात् पंचम काल की समाप्ति पर श्रुत का व्युच्छेद हो जायेगा।151 बीच-बीच में भी धर्म को विध्वंस करने की चेष्टा करने वाले कल्की एवं उपकल्की होते रहेंगे। कल्की एवं उपकल्की - जैनागम में कल्की नाम के राजा का उल्लेख जैन यतियों पर अत्याचार करने के लिये बहुत प्रसिद्ध है। तिलोयपण्णत्ती में इस पंचम काल में 21 कल्की एवं 21 उपकल्की होने का उल्लेख मिलता है। प्रत्येक कल्की 1000 वर्ष के अन्तराल से तथा उसके 500 वर्ष पश्चात् उपकल्की होता है।152 वीरनिर्वाण के 1000 वर्ष पश्चात् इन्द्रपुर में कल्की उत्पन्न हुआ। इसका नाम चतुर्मुख, आयु 70 वर्ष एवं राज्यकाल 42 वर्ष रहा।153 वह अपने राज्यकाल में अतिलोभी होकर मुनिराज के आहार में से भी प्रथम ग्रास शुल्क स्वरूप मांगने लगा। मुनिराज अन्तराय जानकर निराहार चले गये। उनको अवधिज्ञान उत्पन्न हो गया। 150. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग-1, परिशिष्ट, पृष्ठ-482 सारांश 151. तिलोयपण्णत्ती, 4/1504-1505 का सार 152. वही, 4/1528 153. वही, 4/1521
SR No.009364
Book TitleKaalchakra Jain Darshan ke Pariprekshya me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanjiv Godha
PublisherA B D Jain Vidvat Parishad Trust
Publication Year2013
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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