SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काल चक्र : जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में और सभी नारायण नियम से अधोगामी (नरक जाने वाले) होते हैं तथा तहेव पडिसत्तू 140 शब्द का प्रयोग कर वे प्रतिनारायण की भी नियम से अधोगति बताते हैं। इनमें नारायण नियम से बलदेव के छोटे भाई होते हैं।141 प्रतिनारायण तीन खण्ड का शासक होता है। जैन आगमों42 के अनुसार सभी प्रतिनारायणों की मृत्यु नारायणों के द्वारा ही होती है। उसे मारकर ही नारायण तीन खण्डों का अधिपति होता है, उसे अर्द्धचक्री कहा जाता है। रावण प्रतिनारायण था, अतः उसका वध बलदेव राम ने नहीं, नारायण लक्ष्मण ने किया था। पदमपुराण'43 में रावण एवं लक्ष्मण के युद्ध का विस्तृत वर्णन किया गया है। उक्त सभी शलाका पुरूष कर्मभूमि में ही होते हैं; क्योंकि इनके जीवन में विशिष्ट कर्म का उदय होता है। आचार्य पूज्यपाद स्वामी'44 कर्मभूमि ही उसे कहते हैं, जहाँ शुभ एवं अशुभ कर्मों का आश्रय हो। यद्यपि तीन लोक में सर्वत्र कर्म का आश्रय हैं, फिर भी इससे कर्मभूमि में उत्कृष्टता का ज्ञान होता है कि इनके प्रकर्ष रूप से कर्म का आश्रय हैं। सातवें नरक को प्राप्त करने वाले अशुभ कर्म का भरतादि क्षेत्रों में ही अर्जन किया जाता है। इसीप्रकार सर्वार्थसिद्धि आदि स्थान विशेष को प्राप्त करने वाले पुण्य कर्म 140. तिलोयपण्णत्ती, 4/1450 141. पद्म पुराण, भाग-1, 20/214 142. तिलोयपण्णत्ती, 4/1435 143. पदमपुराण, भाग-3, 76/28-34/पृ.69 144. सर्वार्थसिद्धि, 3/37/437/ पृ. 173
SR No.009364
Book TitleKaalchakra Jain Darshan ke Pariprekshya me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanjiv Godha
PublisherA B D Jain Vidvat Parishad Trust
Publication Year2013
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy