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________________ ४१५ अध्ययन ५ उ. १ गा. ३०-३१-निक्षेपणचतुर्भङ्गन्यः निक्षिप्य एकस्योपर्यन्यस्य निक्षेपणं कृत्वा । निक्षेपणं च त्रिधा-सचित्तमचित्तं मिश्रं चेति, एतानाश्रित्य तिसश्चतुर्भङ्गयो भवन्ति । तत्र [१] सचित्ता-ऽचित्तयोश्चतुर्भङ्गी यथा' (१) सचित्ते सचित्तस्य, (२) सचित्तेऽचित्तस्य, (३) अचित्ते सचित्तस्य, (४) अचित्तेऽचिचस्य निक्षेपणम् । १। [२] सचित्तमिश्रयोश्चतुर्भङ्गी यथा (१) सचित्त सचित्तस्य, (२) सचित्ते मिश्रस्य, (३) मिश्रे सचित्तस्य, (४) मिश्रे मिश्रस्य निक्षेपणम् । २। [३] अचित्त-मिश्रयोश्चतुर्भङ्गी यथा(१) अचित्तेऽचित्तस्य, (२) अचित्ते मिश्रस्य, (३) मिश्रेऽचित्तस्य, (४) मिश्रे निक्षेपण दोप तीन प्रकारका है-(१) सचित्त, (२) अचित्त, और (३) मिश्र । इन तीनोंको आश्रित करके तीन चौभंगियाँ होती हैं। [१] सचित्त-अचित्तकी चौभंगी-. (१) सचित्तपर सचित्तका, (२) सचित्तपर अचित्तका, (३) अचित्त पर सचित्तका, (४) अचित्तपर अचित्तका । १। [२] सचित्त-मिश्रकी चौभंगी (१) सचित्त पर सचित्तका, (२) सचित्त पर मिश्रका, (३) मिश्रपर सचित्तका, (४ मिश्रपर मिश्रका निक्षेप करना । २ । [३] अचित्त-मिश्रकी चौभंगी(१) अचित्त पर अचित्तका, (२) अचित्त पर मिश्रका । (३)मिश्रपर निक्षेप होप त्रय प्रश्न छ. (१) सथित, (२) अथित, (७) भित्र એ ત્રણને આશ્રિત કરવાથી ત્રણ ચોભંગીઓ થાય છે. [१] सन्धित-मयित्तन योमी. (१) सथित्त ५२ सथित्तनु, (२) सथित्त५२ मथित्तनु, (3) मथित्त પર સચિનનું. (૪) અચિત્ત પર અચિત્તનું ૧ [२] सथित्त-भिटनी यौमी (१) सयित्त ५२ सचित्त, (२) सथित्त ५२ मिश्र, (3) भित्र ५२ सयितन, (४) भित्र ५२ मिश्रनु, निपाणु ४२. (२॥ [3] अस्थित्त- भिनी योगी(१) मथित ५२ मथितर्नु, (२) अस्थित्त ५२ मिश्रन, (3) मिश्र ५२
SR No.009362
Book TitleDashvaikalika Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages725
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size21 MB
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