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________________ कल्पसूत्रे ., जाओ, पढमभिक्खादायारो बंभदत्तो आहेसि । पढमभिक्खाए खीरं लद्धं, .. अजितनाथ प्रभोः सशब्दार्थ दुवालसवरिसं छउमत्थं पालिउं सत्तवण्ण नाम चेइयरुक्खतले पोससुक्क एक्कारसमा ॥७८३॥ दिवसे केवलणाणं, केवलदसणं समुप्पण्णं बीयरस अजियनाह पहुस्स चेइयसुक्किले पंचमी दिणे निव्वाणं पाविअ । अजियपहू देहपमाणं पन्नासोत्तर चत्तारिसय । धणूपमाणं, कंचणवण्णो, लक्खणं गयस्स, गणहरो गणनायगो सीहसेणो, मुहा साहुणी फग्गुणी, तस्स पव्वज्जाकालो एगलक्खपुव्वं, गणहराणां संखा ·णवइ, साहुसंखा एगलक्खं, साहुणीणं संखा तीससहस्सोत्तरतिलक्खा, : सावगाणं संखा अट्ठाणउइ सहस्सोत्तर दोलक्खा, सावियाणं चउवण्णसहस्सोत्तर पंचलक्खा, केवली साहूणं संखा बीससहस्सा, केवलीसाहुणीणं संखा चत्तालीससहस्सा, ओहिनाणीणं संखा चत्तारि सयोत्तर नवसहस्सा, मणपज्ज ॥७८३॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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