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________________ कल्पपत्रे परिच्चज्ज सुहम्मासामिसमीवे पव्वइओ] स्वयं पांचसौ सत्ताईसवें होकर निन्यानवें क्रोड । जम्बूस्वामि . परिचयः सशन्दार्थे .. सौनया का त्याग करके सुधर्मा स्वामी के समीप संयम धारण किया । [सेणं सिरि ॥७५५॥ जंवू सामी सोलसबरिसाइं गिहत्थत्ते] वे सोलह वर्ष गृहस्थावस्था में [वीसं वासाई छउमत्थे] वीस वर्ष छद्मस्थ अवस्था में [चोयालीसं वासाइं केवलिपज्जाए] चवालीस - वर्ष केवली अवस्था में [एवमसीई वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता पभवं अणगारं नियपट्टे ' ठाविय सिरि वीरनिव्वाणाओ चउसहितमे वरिसे सिद्धिं गए] इस प्रकार कुल अस्सी । वर्ष की आयु पालकर प्रभव अणगार को अपने पाट पर स्थापित करके श्रीवीर निर्वाण ... ... से चौसठवें वर्ष में सिद्धि को प्राप्त हुए। [सिरि जंबू सामी जाव मोक्खं गओ आसी ताव एव भरहेवासे दस ठाणा । विच्छिसु] श्रीजम्बूस्वामी जब मोक्ष गये तब इस भरत क्षेत्र में दस बातों का । - विच्छेद हो गया [तं जहा] वह इस प्रकार है-[मणपज्जवणाण] मनःपर्यवज्ञान [परमोही-.' ॥७५५॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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