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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे गौतमस्वामिनः विलाप: केवलज्ञानप्राप्तिश्च ॥७३४॥ गौतम स्वामीका समग्र चरित्र आश्चर्यजनक है-अनोखा है। जिस रात्रि में श्रमण | भगवान् महावीर कालधर्मको प्राप्त हुए, वह रात्रि देवोंने दिव्य प्रकाशमय बनादी थी, | तभी से वह रात्रि 'दीपावलिका' इस नाम से प्रसिद्ध हुई । मल्लकी-जाति के काशीदेशके नौ गणराज्यों ने तथा लेच्छकी जातिके कोशलदेशके नौ गणराजाओंने, इस प्रकार अढारहों गणराजाओं ने संसार जन्ममरणका अन्त करने वाले दो-दो पोषधोपवास किये । पोष अर्थात् धर्मकी पुष्टि करने वाला उपवास पोषधोपवास कहलाता है । अथवा धर्मका पोषण करनेवाला, अष्टमी आदि पर्व-दिनों में किया जानेवाला, आहार आदिका त्याग करके जो धर्मध्यानपूर्वक निवास किया जाता है, वह पोषधोपवास कहलाता है। दूसरे दिन अर्थात् कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को देवोंने गौतमस्वामी के केवलज्ञान प्राप्ति का महोत्सव मनाया था। इस कारण वह दिन-कार्तिक शुक्ल प्रतिपद् नवीन वर्षके आरंभका दिन कहलाया । भगवान् महावीरके ज्येष्ट भ्राता नन्दिवर्धनने, भगवान् को CATEGICA ॥७३४॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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