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________________ गौतमस्वामिनः विलापः केवलज्ञानप्राप्तिश्च कल्पसत्रे वीतराग, राग से वर्जित होते हैं। जिसका नाम ही वीतराग हो वह किस पर राग सशब्दार्थे रक्खेगा? किसी पर भी नहीं । ऐसा जानकर गौतमस्वामीने अवधिज्ञान का उपयोग ॥७३२॥ लगाया अवधिज्ञान का उपयोग से उन्हें मालूम हुआ कि यह भगवान् को उपालंभ देना मेरा अपराध है। यह अपराधभवरूपी कूप में गिरानेवाला और मोहजनित है। यह जानकर उन्होंने अपने अपराध के लिये पश्चात्ताप किया और विचार कियाकि संसार में मेरा कौन है ? और मैं किसका हूं। क्योंकि यह आत्मा न किसी दूसरे आत्मा के साथ आता है, न साथ जाता है। कहा भी है-'मैं अकेला हूं-अद्वितीय हूं। मेरा कोई नहीं है और मैं किसी का नहीं हूं। इस प्रकार मनसे अपने दैन्य रहित उदार आत्मा का अनुशासन करे।' इस प्रकार एकत्व भावना से प्रभावित हुए गौतमस्वामी को कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा को, ठीक सूर्योदय के समय ही लोक और अलोक को जानने It देखने में समर्थ, मोक्ष के कारणभूत, समस्त पदार्थों को प्रत्यक्ष करनेवाले, अविकल ७३२॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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