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________________ कल्पसत्रे सशब्दार्थे ॥७२८॥ गौतमस्वामिनः विकाप: केवलज्ञानप्राप्तिश्च वचन से एकत्वभावना से भावित गौतमस्वामी को [कत्तियसुक्कपडिवयाए दिणयरोदय- समयमि चेव लोयालोयणसमत्थं निव्वाणं कसिणं पडिपुण्णं अव्वावाहयं निरावरणं अणंतं. अणुत्तरकेवलवरणाणदंसणं समुप्पण्णं] कार्तिक शुक्ला प्रतिपद के दिन सूर्योदय के समय लोक और अलोक को देखने में समर्थ, निर्वाण का कारण सब पदार्थों को साक्षात्कार करनेवाला प्रतिपूर्ण अव्याहत, निरावरण, अनंत और अनुत्तर श्रेष्ठ केवलज्ञान और केवलदर्शन उत्पन्न हो गया। [तया भवणवइ वाणमंतरजोइसिय विमाणवासीही देवदेवीविदेहि सयसयइड्ढीसमिद्धेहि आगंतूण केवलमहिमा कया] उस समय भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क और विमानवासी देवों और देवियों के समूहने अपनी ऋद्धि और समृद्धि के साथ आकर केवलज्ञान की महिमा की [तेलुकम्मि अमंदाणंदो संजाओ] तीनों लोक में अमन्द आनंद हो गया [महापुरिसाणं सव्वावि चेटा हियकरा एव हवंति] महापुरुषों की सभी चेष्टाएं हितकर ही होती ॥७२८॥ 2
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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