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________________ eHES आयुषः अल्पत्वदीधत्वकरणे असमर्थत्वम् कल्पसूत्रे जहां पर श्रमण भगवान् महावीर बिराजमान थे वहां गया वहां जाकरके श्रमण भगवान् सशन्दाथै IS महावीरको वंदनाकी नमस्कार किया वंदना नमस्कार करके श्रमण भगवान् महावीर ॥७०८॥ प्रभुसे धर्मका श्रवण कर उसे हृदयमें धारण करके हृष्ट तुष्ट होकर प्रभुको इस प्रकार 01 कहा हे प्रभो निर्वाणका समय समीपवर्ति जानकर हाथ जोडकर प्रार्थना करता हूं गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान उत्पत्ति के समय हस्तोत्तरा नक्षत्र था, अब भासराशी नाम का महाग्रह संक्रांत हुवा है दो हजार वर्ष पर्यन्त आपके साधु साध्वीयोंका पूजा सत्कार प्रवर्तेगा दो घटि की आयुष्यकी वृद्धि कीजिए क्यों की तब तक भस्मराशी महायह शांत हो जायगा भगवान ने कहाहे शक! में मेरु पर्वतको एक अंगुलीसे उठाने में शक्तिमान् हूं, परंतु निरुपम आयुष्य एकक्षण भी न्यून अथवा अधिक करनेमें समर्थ नहीं हूं, रात्रि मे दिवस करनेको समर्थ हूं, और दिवस में रात्री बनाने में समर्थ हूं परंतु निरुपम आयुष्य एकक्षण भरका भी न्यूनाधिक करने में समर्थ नहीं हूं।' ॥७०८॥ AIMAGE
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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