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________________ कल्पसूत्रे शब्दार्थे ॥६३९॥ रियं, अवसरीरं अनावरीयं, मुहपत्ती रहियं लघुदंडक रयोहरण धारगा, हत्थे दंड धारगा अहवा नग्गसरीरा, मयूरपिच्छी धारगा, कमंडलधारेगा एए कुलिंगिण हवंति ॥२७॥ भावार्थ - खलिंग - रजोहरण निशीथिका सहित रखे, डोरासहित मुखवस्त्रिका मुह पर बांधे, गोच्छक और पात्र तथा चद्दर ओढे, चोलपट्टक पहिरे, ज्ञान- दर्शन - चारित्र के आराधना करनेवाले स्वलिङ्गी होते हैं । गिहिलिंगी - गृहस्थ के वेश में रहनेवाले श्रावक आदि, पडिमाधारी श्रावक रजोहरण के ऊपर निशीथिया नहीं बांधनेवाले, । अन्यलिंगीवौद्धधर्मी तथा अन्य बाबा योगी आदि हैं, कुलिंग - आधाशरीर पर कपडा ओढकर और आधा शरीर उघाडा रखना, मुहपत्ती नहीं बांधना, नानी दांडी का रजोहरण रखना, हाथ में दण्डा रखना अथवा नग्न शरीर रहना, मोरपिंछी रखना, कमण्डलु विगेरे रखना ये कुलिंगी कहे जाते हैं । लम्बी मुहपत्ती बांधने वाले, दया, दान को उत्थापने वाले, CSSSS स्वलिङ्गीनामन्यलिङ्गीनां च साधुवेप धारण प्रकार: ॥६३९॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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