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________________ सशब्दार्थे MSRED बदरवायुकायानां 'सूक्ष्म नामकारणम् ॥६२८॥ कल्पसूत्रे । [काउसग्गं] कायोत्सर्ग [करेइ] करे । [तओ पच्छा] तत्पश्चात् [सीसे] शिष्य [काउसग्गं] कायोत्सर्ग [णमोकारेण] नवकार " मंत्र से [परित्ता] पालकर [एगं] एक [चउवीसत्थयं] लोगस्स का पाठ [भणिज्जा] बोले [तओ पच्छा] उसके पीछे [सेहे] शिष्य [एवं वएज्जा] इस प्रकार कहे [भंते] हे भगवन् ! आप मुझे [सामाइयचरितं] सामायिक चारित्र [पडिवज्जावेह] अंगीकार करावे फिर । [आयरिए भणेज्जा] आचार्य कहे [हता] हां [पडिवज्जामि] अंगीकार कराता हूं॥२४॥ भावार्थ-हे भगवन् किस कारण से बादरवायुकायके जीवों का सूक्ष्म ऐसा नाम कहा है ? हे गौतम ! वे चर्मचक्षुवालों से देखे नही जाते है इस कारण से हे गौतम! सूक्ष्म ऐसा नाम कहा है । मुनिवेष के लिये मुखवस्त्रिका आदि नाम कहा है। मुखवस्त्रिका मुखपर वांधते हैं । वायुकाय के जीवों की रक्षा के लिये मुहपत्ती को अरिहंतोने लग-साधु चिह्न कहा है । मुखवस्त्रिका स्वलिंग और विनयमूल धर्मरूप है, इसलिए ॥६२८॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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