SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 626
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे पापपरिहारपूर्वक धर्मस्वीकारः ॥६१०॥ -EmBen आज्ञा प्रमाणे विशेषे करी पाल छं [तं धम्म] ते धर्मने [सदहतो] सर्दहतो थको [रोअंतो] रोचवतो थको [फासंतो] स्पर्शतो थको [पालंतो] पालतो थको [अणुपालंतो] विशेष करी पालतो थको [तस्स धम्मस्स] ते वीतरागना धर्मनी, [केवली पन्नत्तस्स] केवली प्रज्ञाप्त [प्ररूपेल] [अब्भुटिओमि] एवा उद्यमवंत-तत्पर [आराहणाए] आराधनाने विषे [विरओमि] निवर्तत एवो छु [विराहणाए] विराधनाने विषे [असंजमं] प्राणातिपातादिरूप असंयमने [परियाणामि] जाणुं छं[संजमं] संयमने [उवसंपज्जामि] अंगीकार करूंछं [अबभ] अब्रह्मचर्य ने [परियाणामि] ज्ञप्रज्ञाए जाणी पचखु,, [कप्पं] पिंडादिक चार कल्पनिकने [उवसंपज्जामि] अंगीकार करूं छं [अकप्पं] अकल्पनिक आहार स्थानक वस्त्रपात्रादिने [परियाणामि ज्ञप्रज्ञाए जाणी पचखु छ [कप्पं] पिंडादिक चार कल्पनिकने [उवसंपज्जामि] अंगीकार करूंछ [अन्नाणं] अज्ञान [अन्य प्ररूपित] भावने [परिआणामि] ज्ञप्रज्ञाए जाणी पचखु छ [नाणं उवसंपज्जामि] विशिष्ट ज्ञानने 3.2 ॥६१०॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy