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________________ कल्पसूत्रे शब्दार्थे ॥५८८ ॥ भावार्थ - मौर्य पुत्र को दीक्षित हुआ सुनकर अकम्पित नामक पण्डित विचार करने लगे- जो जो भी महावीर के पास गया । वह लौटकर वापिस नहीं आया । उन्होंने सभी के संशय का निवारण कर दिया और सभी उनके समीप दीक्षित हो गये । तो मैं भी क्यों न जाऊं और अपने संशय का निवारण करूं ? इस तरह विचार कर अकम्पित पंडित भगवान् के पास अपने तीनसौ शिष्यों के परिवार को साथ लेकर पहुंचे । उन्हें देखकर भगवान् ने कहा- हे अकंपित ! 'परभवमें, नरक में नारक - नरक जीव नहीं हैं । इस वेदवाक्य से तुम्हारे मन में यह संशय है कि नारक नहीं है । लेकिन तुम्हारा मत मिथ्या है । नारक तो हैं, पर वे इस लोक में आते नहीं हैं और मनुष्य नरक में (इस शरीर से) नहीं जा सकते । हां अतिशय ज्ञानी नरकके जीवोंनारकों को केवलज्ञान से प्रत्यक्ष देखते हैं । तुम्हारे शास्त्र में भी ऐसा वाक्य मिलता है कि- 'नारको वै एष जायते यः शूद्रान्नमश्नाति जो ब्राह्मण शुद्र का अन्न अकम्पिता - दिनां शङ्कानिवारणम् प्रव्रजनं च 1146611
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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