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________________ सशब्दार्थे कल्पसूत्रे आदि के आघात वगैरह किसी कारण से इन्द्रियों नष्ट हो जाती है, तब इन्द्रियों के वायुभूतेः hi उपघात की स्थिति में भी आत्मा पहले अनुभव किये गये शब्द आदि विषयों का ॥५५२॥ निवारणम् 4 स्मरण करता हैं। इसी कथन का स्पष्टीकरण करते हैं-जैसे 'वह शब्द मैंने पहले (श्रोत्र ॥ प्रव्रजनं च इन्द्रिय का उपघात होने से पूर्व) सुना था । वह वन भवन वसन (वस्त्र) आदि वस्तु 4 समूह मैंने पहले देखा था। वह सुगंध या दुर्गंध मैंने पहले सूंघी थी। वह मीठा या र ! तिक्त रस मैंने पहले आस्वादन किया था। वह कोमल या कठोर स्पर्श मैंने पहले छुआ था। इस प्रकार का जो स्मरण होता है, वह स्मरण जीव के सिवाय और किसे ॥ - होगा ? जीव के सिवाय और किसी को नहीं हो सकता, क्योंकि अनुभव का कर्ता जीव - ही है। और भी कहते हैं-तुम्हारे शास्त्र में भी कहा है कि-'यह नित्य, ज्योतिर्मय और निर्मल आत्मा सत्य से, तप से तथा ब्रह्मचर्य से उपलब्ध होता है, जिसको धैर्यवान्- जितेन्द्रिय तथा संयतात्मा की तरह इन्द्रियों के विषयों से मनको निगृहीत करनेवाले- ॥५५२॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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