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________________ TELord । कल्पसूत्रे 'वैरुप्यं व्याधिपिण्डः स्वजनपरिभवः कार्यकालातिपातो, अग्निभूते सशब्दार्ये विद्वेषो ज्ञाननाशः स्मृतिमतिहरणं विप्रयोगश्च सद्भिः । निवारणम् ॥५४२॥ पारुष्यं नीचसेवा कुलबलतुलना धर्मकामार्थहानि:, प्रव्रजनं च - कष्टं भोः ! षोडशैते निरुपचयकरा मद्यपानस्य दोषाः', । अर्थात्-मदिरापान से हानिकर सोलह दोष उत्पन्न होते हैं-विरूपता१, नाना १ प्रकार की व्याधियों२, स्वजनों के द्वारा तिरस्कार३, कार्य-काल की बर्बादि४, विद्वेष५, । ज्ञान का नाश६, स्मरण शक्ति और बुद्धि की हानि७, सज्जनों से अलगावद, रुखापन९, " नीचों की सेवा१०, कुल११, बल १२, तुलना १३, धर्म १४, काम १५, और अर्थ १६, की हानि'। और भी कहा है| "श्रूयते च ऋषिर्मद्यात्, प्राप्तज्योतिर्महातपाः। स्वर्गाङ्गनाभिराक्षिप्तो मूर्खवन्निधनं गतः ॥१॥ ॥५४२॥ '.
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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