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________________ इन्द्रभूतेः सशब्दार्थे ||५२४॥ शङ्कानिवारणम् प्रतिबोधश्च कल्पसूत्रे हा प्रकार कह कर श्रमण भगवान् महावीरस्वामी को वंदना की नमस्कार किया, वंदना नमस्कार करके उत्तर पूर्व दिशा- ईशानकोन में गया। वहां जाकर पोथी एवं कमंडलु तथा दर्भासन और पीतांबर एवं यज्ञोपवीत को एकबाजु पर रखदिये तत्पश्चात् इन्द्रभूति आदि ब्राह्मणों ने पंचमुष्टिक लोच किया। तदनन्तर स्वर्ग के अधिपति देवेन्द्र देवराजने चदर चोलपट्ट-वस्त्र, पात्र एवं सदोरक मुखवस्त्रिका, रजोहरण गोच्छक पात्री एवं वस्त्र उनको दिये। तदनन्तर इन्द्रभूति आदि ब्राह्मणोंने सदोरकमुहपत्तिको मुखपर बांधी एवं चोलपट्टको पहिना तथा चद्दर ओढी एवं रजोहरण गोच्छक एवं पात्रा को धारण करके साधुवेश ग्रहण किया, यह शुभ परिणाम से एवं प्रशस्त अध्यवसाय से विशु द्धयमान लेश्या से तदावरण कर्म के क्षयोपशम से इंद्रभूति को अवधिज्ञान एवं अव| धिदर्शन उत्पन्न हुवा।... तदनन्तर वे जहां पर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी थे वहां पर गये, वहां जा करके ॥५२४
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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