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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥४९९|| भगवताकथितधमकथा स्वामीने [सीहसेण राया] सिंहसेन राजा एवं [सीलसेणा णामं देवी] सीलसेना नाम की रानी और [बहवे] अनेक [भवणवइवाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया य] भवनपति वानव्यन्तर ज्योतिषिक एवं वैमानिक [देवा य देवीओ य] देव और देवियां [इंदभूई पामोक्खाणं] इन्द्रभूति आदि [माहणा य] ब्राह्मण से युक्त [तीसे य महइ महालयाए परिसाए] वह महान् विशाल परिषदा में [धम्मकहा] धर्मकथा कही-[से बेमि] जिस सम्यक्त्व का तीर्थंकरादिकोने उपदेश किया है वही मैं कहता हूं। [जे य अईया] अतीतकाल में जितने तीर्थंकर हुए हैं, [जे य पडुप्पन्ना] वर्तमान काल में जो तीर्थंकर विद्यमान है Im [जे य आगमिस्सा अरिहंता भगवंतो] और जो आगामिकाल में होनेवाले तीर्थंकर भगवान् हैं [ते सव्वे वि] सभी वे [एवमाइक्खंति] इस प्रकार कहते हैं [एवं भासंति] इस प्रकार भाषण करते हैं, [एवं पण्णवंति] इस प्रकार की प्रज्ञापना करते हैं [एवं परूति] इस प्रकार की प्ररूपणा करते हैं-सव्वे पाणा] सभी प्राणी-पृथिव्यादि स्थावर एवं ॥४९९॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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