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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥३६७॥ वारिज्जमाणावि गिहमागयस्स तस्स पायपक्खालणं करीअ] एक बार ग्रीष्म के समय Iril चंदनमें अन्य सेवक के अभाव में वसुमती सेठ के द्वारा मना करने पर भी वाहर से घर वालायाः चरितआये हुए धनावह के पैर धोने लगी। [पाए परखालतीए तीए केसपासो छटिओ] वर्णनम् पैर धोते समय उसका केशपाश छूट गया। ["इमाए केसपासो उल्लभूमीए मा पडउ" til त्ति कट्ठ तं सेट्ठी नियपाणिलट्टीए धरिऊण बंधीअ] तब इसका केशपाश गीली भूमि | में न पड जाय' ऐसा सोचकर सेठ ने उसे अपने हाथ रूप यष्टी में लेकर बांध दिया [तया गवक्खट्रिया सेठिणा भज्जा मूला वसुमईए केसपासंबंधमाणं सेटिं दट्टण चिंतीअ] तव गवाक्ष में स्थित सेठ की पत्नी मूला ने सेठ को वसुमती का केशपाश बांधते देखकर विचार किया [ इमं कण्णं पालिय पोसिय मए अन, कयं] इस कन्या का पालन पोषण करके मैंने अनर्थ किया [जइ इमं कण्णं सेट्री उठ्यहेज्जा तो हं अंवयट्ठा चेव भविस्सामि] कदाचित् सेठ ने इस कन्या के साथ विवाह कर लिया तो में अपदस्थ ||३६७॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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