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________________ विहरणम् ॥३१॥ - कल्पसूत्रे " हीलना एवं निंदना आदि होने से बहुत कर्मों की निर्जरा होगी।' ऐसा सोचकर भग- भगवतो लाढदेशमशब्दार्थे , वान् ने लाढ देश में प्रवेश किया [तत्थ पविसमाणस्स भगवओ मग्गे चोरा मिलिया] । लाढ देश में प्रवेश करते ही भगवान् को मार्ग में चोर मिले [ते य भगवं दट्टणं अव सउणं जायं जं मुंडिओ मिलिओ एवं अवसउणं एयस्स चेव वहाए भवउ' ति कट्ट] उन्होंने भगवान् को देखकर विचार किया कि हमें यह मुंडा मिला अतः अपशुकन हो गया यह अपशकुन इसी मुंडे के वध के लिए हो, ऐसा सोचकर [भगवं लटिमुद्विः । । पहारेहिं बहुसो हणिसु] चोरोंने भगवान् को लाठी और मुट्टि से खूब मारा [अह । दुच्चरलाढचारी भगवं तस्स देसस्स वजभूमि सुब्भभूमि च समणुपत्ते] भगवान् ने उसे सम्यक् प्रकार से सहन किया। तदनन्तर दुर्गम लाट देश में बिहार करने वाले भगवान् हुए क्रमशः लाट देश की वज्रभूमि तथा शुभ्रभूमि में पधारे [तत्थ णं से विरूवरुवाई तणसीयतेयफासाइं दंसमसगे य सया समिए सम्म सहीअ] वहां भगवान ने ॥३१॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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