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________________ उपकाराप। कारविपये भगवतः समभावः ॥२८७|| 19SA कल्पसूत्रे देवदूष्य वस्र को धारण किये रहे-सचेलक रहे, तत्पश्चात् एक समय हेमंत ऋतुके समय सशब्दार्थे । में भगवान् देवदूष्य वस्त्र को बाजू पर रखकर कायोत्सर्ग में स्थित थे, उस समय शीत से पीडित कोई मनुष्य आकर भगवान् ने बाजू पर रखा हुवा उस देवदूष्य वस्त्र को लेकर चला गया अतः उसके पीछे देवदूष्य वस्त्र को पुनः धारण न करने से भगवान् अचेल हो गये। - अचेलक होने के पश्चात् भगवान् महावीर ने पूर्ववर्ती जिनों तीर्थकरों-की परम्परा का पालन करते हुए और एक गांव से दूसरे गांव विचरते हुए, दूसरे चौमासे में राजगृह नगर के नालन्दा नामक पाडे में, मास-मास खमण करके स्थित हुए। पहले मासखमण के पारणे में विजय-सेठ ने भगवान् को आहार-दान दिया। (१)। विजय सेठ के ही समान, दूसरे मासखमण के पारणे में नन्द सेठ ने, आहार वहराया। (२) तीसरे मास खमण के पारणे में सुनन्द सेठ ने (३)। और चौथे मासखमण । के पारणे 2 के दिन कोल्लाकसन्निवेश में बहुल ब्राह्मण ने भगवान् को वहराया, ये चारों ने अपना म ॥२८७॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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