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________________ उपकारापकारविषये भगवतः समभाव: ॥२८४॥ फल्बसूत्रे सूचक संबोधन के साथ वह बोला अरे मृत्यु की इच्छा करने वाले ! अरे लक्ष्मी, सशब्दार्थे , लज्जा, धैर्य और ख्याति से हीन । अरे धर्म पुण्य स्वर्ग और मोक्ष की कामना करने i वाले ! अरे धर्म पुण्य स्वर्ग और मोक्ष की लालसा करनेवाले ! अरे धर्म पुण्य स्वर्ग और मोक्ष के प्यासे ! तू मुझ संगम देव को नहीं जानता ? ले, मैं तुझे धर्म से भ्रष्ट करता हूं।' इस प्रकार कहकर उसने बहुत बड़ा धूलि-समूह वैक्रिय शक्ति से उडाकर । प्रभु के श्वासोच्छ्वास का निरोधकर दिया। इतने पर भी प्रभु को क्षोभरहित देखकर उसने तीखे मुखवाली लाखों चीटियों को विकुर्वणा करके प्रभु को उनसे कटवाया, खूब कटवाया और पूरी तरह सभी अंगों में कटवाया । इससे प्रभु के शरीर से रुधिर की तेज धारा बहने लगी। फिर भी भगवन् कायोत्सर्ग से विचलित नहीं हुए ! तब संगम देव ने भयानक सूंडवाले और तीखे दांतोवाले हस्ती की विकुर्वणा की। संगम देव द्वारा वैक्रिय शक्ति से उत्पन्न किये गये हाथी ने भगवान् को उपर ऊठाकर नीचे . . Kharel ॥२८४॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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