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________________ E68 कल्पसूत्रे सशब्दार्थे - ॥२८॥ उपकारापकारविषये भगवतः समभावः बैठे [तं समयं] उस समय [एगो सीय पीडिओजणो] शीत से पीडित कोइ मनुष्य [आगमीय] आकर [देवदूसं वत्थं गहिय गओ] देवदूष्य वस्त्र को उठाले गया [अओ अचेलए होत्था] अतः तत्पश्चात् फिर से देवदूष्य वस्त्र ग्रहण न करने से भगवान् अचेलक हो गये। [तए णं से समणे भगवं महावीरे पुवाणुपुट्विं चरमाणे गामाणुगाम दूइजमाणे] उसके बाद श्रमण भगवान् महावीर पूर्ववर्ती तीर्थंकरों की परम्पराका अनुसरण करते हुए ग्रामानुग्राम विचरते हुए [बीयं चाउम्मासं रायगिहस्स णयरस्स नालंदाभिहाणे पाडगे मासमासक्खमणतवेणं ठिए] दूसरे चोमासे में राजगृह नगर के नालंदा नामक पाडे | में मासखमण तपस्या के साथ स्थित हुए। [तत्थ णं पढममासक्खमणपारणगे विजय सेठिणा भगवं पडिलाभिए] वहां पहले मासखमण के पारणे के दिन विजय सेठ ने आहारदान दिया। [एवं बितियपारणगे गंदसेटिणा] इसी प्रकार दूसरे पारणक के दिन नन्द सेठ ने [तइय पारणगे सुनंदसेटिणा] तीसरे पारणक के दिन सुनन्द सेठ ने और २८१।।
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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