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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥२७६॥ चाउम्मासं आलंभियाए णयरीए चाउम्मासियतवेण ठिए ७ । अट्टमं चाउम्मासं • रायगिहे णयरे चाउम्मा सियतवेण ठिए ८ ॥ ५० ॥ शब्दार्थ - [तएण से समणे भगवं महावीरे तओ गामाओ निग्गच्छइ ] उसके बाद श्रमण भगवान् महावीर उस उत्तर वाचाल गांव से बाहर निकलते हैं [निग्गच्छित्ता • सेयंबिया नयरी मज्झ मज्झेण विहरमाणे जेणेव सुरहिपुरं णयरं तेणेव उवागच्छइ ] format aafant नगरी के बीचों बीच से चलकर जहां सुरभिपुर नामका नगर था वहीं पधारते हैं [re णं महारणे सुष्णागारे रत्तीए काउसग्गे ठिए ] और एक महारण्य में जाकर सूने घर में रातभर का कायोत्सर्ग करके स्थित हो गये । [तत्थ णं भगवओ yourतारत्तकालसमयंसि माई मिच्छादिट्ठी एगे संगमाभिहे देवे अंतियं पाउ] वहां मध्यरात्रि के समय मायी मिथ्यादृष्टि संगम नामक एक देव भगवान् के निकट प्रकट हुआ [तए णं से देवे आसुरते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे aced co006004 उपकाराप कार विषये भगवतः समभावः ॥२७६॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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