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________________ भगवतः करपात्रे पवन्दायें ११२९॥ कलाचा समीपे .. प्रस्थानादि वर्णनम् को [ललियवच्छल्लेणं कलाकलावं सिक्खेउं] अतिशय वात्सल्य के कारण कला कलाप सीखने ने के लिये [महामहेणं महोवहारेणं अणवज्जेसु वज्जेसु वज्जमाणेसु] बडे उत्सव और बहुत उपहारों के साथ तथा मनोहर बाजों के साथ एवं [पउरपरिवार परियरियं तं कलायरियसविहे. णिति] तथा विपुल परिवार के साथ कलाचार्य के समीप भेजा [भयवं उ ओहिण्णू अविअणभिण्णुमुद्दाए] भगवान् अवधिज्ञानी होने पर भी, अनभिज्ञ-सी आकृति बनाये, [अम्मापिऊण मणुरोहेण कलायरियपासे पट्टिओ] माता पिता के अनुरोध से कलाचार्य के पास जाने के लिए रवाना हुए पहुस्स सोहणमागमणंअवगमिय कलायरिओ पसन्नो] भगवान् का शुभागमन जानकर कलाचार्य प्रसन्न हुए [उच्चासणमज्झासीणो] ऊंचे आसन पर बैठ गये [अहीणपमोयपीणो] अतिशय प्रमोद से फूल गया [अहुणेवतरलतरहारो अणुगुयपरिवारो रायकुमारो भासमाणो वद्धमाणो] अनुपमहारका धारक परिवार समेत राजकुमार वैद्धमान [ममंतिए आगसिस्सई TAR
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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