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________________ . भगवतः कलाचार्यसमीपे प्रस्थानादि वर्णनम् कल्पसूत्रे ।। चीत्कार करके पृथ्वीतल पर आ गिरा। उसके गिरने पर आकाश में देवों की जयध्वनि समन्दार्थे हुई। तत्पश्चात् श्रीभगवान् के चरणों पर शिर रखकर वह उपद्रव करने वाला देवने भगवान् ११२६|| 7 से अपना अपराध खमाया और सम्यक्त्व प्राप्त कर अपने स्थान पर चलागया ॥३३॥ ... मूलम्-तए णं अण्णया कयाइं पहुस्स अम्मापिउणो सयलकलाकलियं। ललियवच्छल्लेणं कलाकलावं सिक्खेउं महामहेणं महोवहारेणं अणवज्जेसु ५. वज्जेसु वज्जमाणेसु पउरपरिवारपरियरियं तं कलायरियसविहे णिंति। भयवं उ .. ओहिण्णू अविअणभिण्णुमुद्दाए अम्मापिऊणमणुरोहेण कलायरियपासे पदिओ। पहुस्स सोहणमागमणं अवगमिय कलायरियो पसन्नो उच्चासणमज्झासीणो अहीणपमोयपीणो अहुणेव तरलतरहारो अणुगयपरिवारो रायकुमारो भासमाणो वद्धमाणो ममंतिए आगमिस्सइ तिकट्ठ तप्पडिच्छं करीअ। किन्तु खंडिय ॥१२६॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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