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________________ कल्पसूत्रे त्रिशलादेवी कृतपुत्रस्तुतिः 3 जुओ सुओ पभूयप्पमोयं जणयइ] यह लोकोत्तर गुणगणों से युक्त पुत्र बहुत आनन्द- सभन्दाथ । दायी होता है। [अवि य] और भी कहा है।१०२॥ . [सीयलं चंदणं वुत्तं] इस लोक में चंदन शीतल है [तओ चंदो सुसीयलो] उसकी अपेक्षा चन्द्रमा अधिक शीतल है . [चंदचंदणओ सीओ] परन्तु चन्द्र और चन्दन की अपेक्षा [महं णंदणसंगमो] पुत्र के अङ्ग का स्पर्श अत्यन्त शीतल होता है ॥२॥ - [सिया उ महुरा नूणं] मिसरी मीठी होती है, [सुहाइ महुरा तओ] उससे भी मीठा अमृत होता है [तेहिं वि अस्स बालस्त, संगमो महुरो महं] और उससे भी मीठा पुत्र का स्पर्श होता है। [कणगं सुहयं लोए] सोना इस लोक में सुखदायी है [रयणं च महासुखम्] उसकी अपेक्षा रत्न अधिक सुखदायी है [तेहिं वि य महासोक्खो अस्स बालस्स संगमो] इन दोनों से भी बढकर इस अनुपम पुत्र का स्पर्शसुखदायक है ॥३१॥ ... अर्थ-'अह ललियसीलालंकिय'-इत्यादि। MBER ॥१०२॥..
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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