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________________ दशमस्य मूलपाभृतस्य चतुर्थ प्राभतप्राभृतम् तदेवं तृतोये प्रामृतप्राभृते चन्द्रेण सह नक्षत्राणां पूर्वभागादि निरूपितम् तत्प्रमङ्गात् चतुर्थं प्राभृतप्रामृतं व्याख्यायते, अत्र पूर्वोक्तानां चन्द्रेण सह योगस्यादिवतव्यः स्यात् यतो नक्षत्राणां पूर्व भागादिक योगस्यादिज्ञानमन्तरेण न ज्ञातुं शक्यते, मतोऽस्मिन् चतुर्थे प्राभृतप्रामृते अभिजिदाद्यष्टाविंशतिनक्षत्राणां क्रमेण योगस्यादि निरूपयन्नाह--'ता कहं ते जोगस्स आदी' इत्यादि। मूलम्-ता कहं ते जोगस्स आदी अहिते? ति वएज्जा ता अभीइ सवणा खलु दुवे णक्खत्ता पच्छाभागा समखेत्ता साइरेगउणयालीसमुहुत्ता तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धिं जोयं जोएति, तओ पच्छा अवरं साइरेगं दिवसं, एवं खलु अभिइसवणा दुवे णक्खत्ता एगराई एगंच साइरेगं दिवसं चंदेण सद्धिं जोयं जोएंति, जोयं जोएत्ता जोयं अणुपरियटुंति जोयं अणुपरियहित्ता सायं चंदं धणिहाणं समप्पंति ।२। ता धणिट्ठा ग्वलु णक्खत्ते पच्छा भागे समखेते तीसंमुहुत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, जोयं जोइत्ता तओ पच्छा राई अवरंच दिवसं, एवं खलु धणिहा णक्खत्ते एगं च राई एगं च दिवसं चंदेणं सद्धिं जोयं जोएइ, जोयं जोइत्ता जोय अणुपरियट्टइ, अणुपरियहित्ता सायं चंद सयभिसयाणं समप्पेइ ३। ता सयभिसया खलु णक्खत्ते णतंभागे अवडूढखेत्ते पण्णरसमुहुत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धि जोय जोएइ णो लभइ अवरं दिवसं, एवं खलु सयभिसया एक्खत्ते एगं राई चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ जोयं जोइत्ता जोयं अणुपरियटइ, जोयं अणुपरिएट्टित्ता पाओ चंद पुव्वापोवयाणं समप्पेइ ४। ता पुन्वापोढवया खलु णक्खत्ते पुन्वंभागे समखेत्ते तीसं मुहुत्ते तप्पढमयाए पाओ चंदेण संद्धिं जोयं जोएइ, तो पच्छा अवरराई एवं खलु पुवापोहवया णक्खत्ते एगं च दिवसं एगं च राई चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ जोयं जोइत्ता जोयं अणुपरियट्टई' अणुपरियद्वित्ता पाओ चंद उत्तरापोहवयाणं समप्पेइ ५, ता उत्तरापोवया खलु णक्खत्ते उभय भागे दिवढखेत्ते पणयालीसमुहुत्ते तप्पढमयाए पाओ चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ अवरंच राई तओ पच्छा अपरं दिवसं, एवं खलु उत्तरापोट्टवया णक्खत्ते दो दिवसे एग च राई चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, जोयं जोइत्ता जोयं अणुपरियट्ठइ अणुपरियट्टित्ता सायं चंदं रेवईणं समप्पेई ६। ता रेवई खलु णक्खत्त पच्छे भागे समखेत्ते तीसं मुहुत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धि जोयं जोएइ, तो पच्छा अवरं दिवसं एवं खल्लु रेवई णक्खत्ते
SR No.009357
Book TitleChandra Pragnaptisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_chandrapragnapti
File Size58 MB
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