SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 738
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७०६ विपाकश्रुते णस्स' दशमस्याध्ययनस्य 'अयमढे पण्णत्ते' अयमर्थः प्रज्ञप्तः । श्रीजम्बूस्वामी माह-'सेवं भंते ! सेवं भंते !' तदेवं हे भदन्त ! तदेवं हे भदन्त ! यद् भगवता मम प्रतिवोधितं तत्सर्वं तदेव-तथैवास्ति ॥ सू० ५ ॥ ॥ इति श्री-विश्वविख्यात-जगवल्लभ-प्रसिद्धवाचक-पञ्चदशभाषाकलितललितकलापालापक-प्रविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मायक-वादिमानमर्दक-श्रीशाहूच्छत्रपतिकोल्हापुरराजप्रदत्त-'जैन शास्त्राचार्य '-पदभूषित-कोल्हापुरराजगुरु-बालब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री-घासीलालव्रतिविरचितायां विपाकश्रुते दुःखविपाकनामक-प्रथमश्रुतस्कन्धस्य विपाकचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायाम् 'अंजू' नामक-दशममध्ययनं सम्पूर्णम् ॥ १ । ॥ १० ॥ ॥ इति श्रीविपाकश्रुतस्य दुःखविपाकारव्यः प्रथमः श्रुतस्कन्धः सम्पूर्णः ॥१॥ मस्स अज्झयणस्स अयमढ़े पण्णत्ते । सेवं भंते ! सेवं भंते !' सुधर्मास्वामी जंबूस्वामी से कह रहे हैं-कि हे जंबू ! श्रमण भगवान महावीर प्रभुने कि जो सिद्धिस्थान को प्राप्त कर चुके हैं दुःखविपाक के इस दशवें अध्ययन का यह भाव प्रतिपादित किया है, 'त्तिबेमि' जैसा भगवान से मैंने सुना है वैसा ही तुम से कहा है ॥ सू० ५ ॥ ॥ इति श्री विपाकश्रुतके दुःखविपाकनामक प्रथमश्रुतस्कन्ध की 'विपाकचन्द्रिका' टीका के हिन्दी अनुवाद में 'अंजू' नामक दसवां अध्ययन सम्पूर्ण ॥ १-१०।। इति श्रीविपाकश्रुतका 'दुःखविपाक'नामक प्रथम श्रुतस्कन्ध संपूर्ण ॥१॥ पण्णत्ते । सेवं भंते ! सेवं भंते ! सुधा स्वामी वामीन डे छ :જંબૂ ! શ્રમણ ભગવાન મહાવીર પ્રભુ, કે જે સિદ્ધિસ્થાનને પ્રાપ્ત કરી ચુકયા છે તેમણે मविपान मा इसमा अध्ययनना मा २ प्रतिपादन ४२॥ छ, 'त्तिबेमि' ते २वी રીતે મેં ભગવાન પાસેથી સાંભળ્યા છે. તેવાજ તમને કહ્યા છે. જે સૂ૦ ૫ / ति विपाश्रुतना 'दुःखविपाक' नामना प्रथम श्रुत२४ धनी . 'विपाकचन्द्रिका' आना गुराती मनुवाईमा 'अञ्जू' नाम भु અધ્યયન સપૂર્ણ ૧-૧૦ | ઈતિ શ્રી વિપાકહ્યુતનું દુઃખવિપાક નામક પ્રથમ શ્રુતસ્કંધ સંપૂર્ણ ૧ છે 43
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy