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________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० ८, शौर्यदत्तवर्णनम् ६१७ जीवियाओ ववरोविए समाणे तत्थेव सेडिकुलंसि० बोहिं० सोहम्मे० महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ५। णिक्खेवो ॥ सू० ९॥ ॥ अट्रमं अज्झयणं समत्तं ॥८॥ टीका गौतमस्वामी भगवन्तं पृच्छति-'सोरियदत्ते णं' इत्यादि । 'सोरियदत्ते णं' शौर्यदत्तः खलु 'भंते' हे भदन्त ! 'मच्छंधे' मत्स्यबन्धः 'इओ कालमासे कालं किच्चा' इतः अस्माद् भवात् कालमासे कालं कृत्वा 'कहिं गच्छिहिइ' कुत्र गमिष्यति ? कहिं उववजिहिइ' कुत्रोत्पत्स्यते ? भगवानाह -'गोयमा' हे गौतम ! 'सत्तरिवासाई' सप्ततिवर्षाणि 'परमाउं' परमायुः ‘पालित्ता' पालयित्वा 'कालमासे कालं किच्चा' कालमासे कालं कृत्वा' 'इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए' अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्याम् उत्कर्षेण एकसागरोपमस्थितिकेषु नैरयिकेषु नैरयिकतया उत्पत्स्यते । 'संसारो' संसारः भवान्तरे परिभ्रमणं तहेव' तथैव मृगापुत्रत्रदेव 'जाव पुढवी' यावत् पृथिवीकायेषु अनेकशतसहस्रकृत्वः उत्पत्स्यते। 'से णं तओ' स खलु ततः 'हत्थियाउरे गयरे' हस्तिनापुरे नगरे 'मच्छत्ताए' ... .. . 'सारियदत्तेणं' इत्यादि । गौतमस्वामी ने भगवान से पूछा कि-हे भदन्त ! 'सोरियदत्ते णं भंते मच्छंधे' यह शौर्यदत्त मच्छीमार 'इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ कहि उववज्जिहिई इस पर्याय से मृत्यु के अवसर पर मर कर कहां जायगा ? कहां उत्पन्न होगा? भगवान ने कहा-'गोयमा' हे गौतम ! 'सत्तरिवासाइं परमाउं पालित्ता कालमासे कालं किच्चा' यह सत्तर (७०)वर्ष की अपनी उत्कृष्ट आयु को समाप्त कर अब काल मास में मृत्यु के अधीन होता हुआ 'इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए संसारो तहेव जाव पुढवीसु, से णं तओ हत्थिणाउरे णयरे मच्छत्ताए 'उववजिहिइ' इस रत्नप्रभा पृथिवी में उत्कृष्ट१ .. 'सोरियदत्ते णं' या.. . गौतम स्वामी भगवान ने पूछयु महन्त ! 'सोरियदत्ते णं भंते मच्छंधे' ते शीत्त भीमा२ 'इओ कालमासे कालं किचा कहिं गच्छिहिइ कहिं उववज्जिहिई मा पर्यायमा भराय पाभान या शे? ४यां उत्पन्न थरी ? लगवाने ४ह्युगोयमा है गौतम ! ' सत्तरिवासाई परमाउं पालित्ता कालमासे कालं किच्चा' ते ७० सित्तर वर्षनी पातानी Scष्ट मायुष्य पूरी ४ीने ४८ समये भरण पाभीन, 'इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए संसारोतहेव जाव पुढवीसु से णं तओ हत्थिणाउरेःणयरे मच्छत्ताए. उवव
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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